पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/२२

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(१७)


(२) कोई थका मांदा भूख का मारा बटोही एक धनवान आदमी के घर पर जा निकला। वहाँ उस समय आमोद-प्रमोद की बातें हो रही थीं। किन्तु उस बेचारे को उन में ज़रा भी मज़ा न आता था। अन्त में गृह के स्वामी ने कहा जनाब, कुछ श्राप भी कहिये। 'मुसाफ़िर ने जवाब दिया, मेरा भूख से बुरा हाल है।' खामी ने लौंडी से कहा, खाना ला। लौंडी ने दस्तरख़्वान बिछा कर खाना रक्खा। लेकिन अभी सब चीज़े तैयार न थीं। स्वामी ने कहा, कृपा कर ज़रा ठहर जाइये अभी कोफ़ता तैयार नहीं है। इसपर मुसाफिर ने यह शेर पढ़ा—

"कोफ़ता दर सफ़रये मागो मुबाश,
कोफ़ंता रा नान-तिही कोफ़तास्त।"

भावार्थ—मुझे [१]*कोफ़ता की ज़रूरत नहीं है। भूखे आदमी को ख़ाली रोटी ही कोफ़ता है।

(३) एक समय मैं मित्रों और बन्धुओं से उकता कर क़िलस्तीन के जंगल में रहने लगा। लेकिन एक दिन ईसाइयों ने मुझे क़ैद कर लिया। उस समय मुसलमानों और ईसाइयों में लड़ाई हो रही थी। मुझे भी खाई खोदने के काम पर लगा दिया। कुछ दिनों के पश्चात् वहां हलबदेश का एक धनाढ्य मनुष्य आया,


  1. * एक प्रकार का व्यंजन।

II