पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/३३

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चन्द्र कहे तो अत्युक्ति न होगी। उपदेश का विषय बहुत शुष्क समझा जाता है, और उपदेशक तो सदैव से अपनी कड़वी, और नीरस बातों के लिए बदनाम रहते हैं। नसीहत किसी को अच्छी नहीं लगती। इसीलिए विद्वानों ने इस कड़ुवी औषधि को भांति भांति के मीठे शर्बतों के साथ पिलाने की चेष्टा की है। कोई चील-कौवे की कहानियां गढ़ता है, कोई कल्पित कथायें नमक मिर्च लगाकर बखान करता है। लेकिन सादी ने इस दुस्तरकार्य को इतनी विलक्षण कुशलता और बुद्धिमत्ता से पूरा किया है कि उनका उपदेश काव्य से भी अधिक सरस और सुबोध हो गया है। ऐसा चतुर उपदेशक कदाचित् ही किसी दूसरे देश में उतपन्न हुआ हो।

सादी का सर्वोत्तम गुण वह वाक्यनिपुणता है, जो स्वाभाविक होती है और उद्योग से प्राप्त नहीं हो सकी। वह जिस बात को लेते हैं उसे ऐसे उत्कृष्ट और भावपूर्ण शब्दों में वर्णन करते हैं कि जो अन्य किसी के ध्यान में भी नहीं आ सके। उनमें कटाक्ष करने की शक्ती के साथ साथ ऐसी मार्मिकता होती है कि पढ़नेवाले मुग्ध हो जाते हैं। उदाहरण की भांति इस बात को कि पेट पापी है, इसके कारण मनुष्य को बड़ी कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं, वह इस प्रकार वर्णन करते हैं:—

"अगर जौरे शिकम न बूदे, हेच मुर्ग़ दर दाम न उफ़तादे, बल्कि सैयाद ख़ुद दाम न निहादे।"