पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/५५

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न तो इतनी कड़ाई करो कि लोग तुम से डरने लगें, और न इतनी नम्रता कि लोग सिर चढ़ें।


दो मनुष्य राज्य और धर्म के शत्रु हैं, निर्दयी राजा और मूर्ख साधु।


राजा को उचित है कि अपने शत्रुओं पर इतना क्रोध न करे कि जिससे मित्रों के मन में भी खटका हो जाय।


जब शत्रु की कोई चाल काम नहीं करती तब वह मित्रता उत्पन्न करता है; मित्रता के बहाने से वह उन सब कामों को कर सक्ता जो वह दुश्मन रह कर न कर सका।


साँप के सिर को अपने बैरी के हाथ से कुचलवाओ। या तो साँप ही मरेगा या दुश्मन ही से गला छूटेगा।