पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५४)

की कलाई वाले से पंजा ले तो यह उसकी मूर्खता है


दुर्जन लोग सज्जनों को उसी तरह नहीं देख सक्ते जिस तरह बाज़ारी कुत्ते शिकारी कुत्तों को देखकर दूर से गुर्राते हैं, लेकिन पास जाने की हिम्मत नहीं करते।


गुणहीन गुणवानों से द्वेष करते हैं।


बुद्धिमान लोग पहला भोजन पच जाने पर फिर खाते हैं; योगी लोग उतना खाते हैं जितने से जीवित रहें, जवान लोग पेट भर खाते हैं, बूढ़े जब तक पसीना न आजाय खाते ही रहते हैं, किन्तु कलन्दर इतना खा जाते हैं कि सांस की भी जगह नहीं रहती।


अगर पत्थर हाथ में हो और साँप नीचे तो उस समय सोच विचार नहीं करना चाहिये।


अगर कोई बुद्धिमान मूर्खों के साथ वादविवाद करे तो उसे प्रतिष्ठा की आशा न रखनी चाहिये।