पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/५८

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जिस मित्र को तुम ने बहुत दिनों में पाया है उससे मित्रता निभाने का यत्न करो।


विवेक इन्द्रियों के अधीन है जैसे कोई सीधा मनुष्य किसी चंचल स्त्री के अधीन हो।


बुद्धि, बिना बल के छल और कपट है, बल बिना बुद्धि के मूर्खता और क्रूरता है।


जो व्यक्ति लोगों का प्रशंसापात्र बनने की इच्छा से वासनाओं का त्याग करता है, वह हलाल को छोड़कर हराम की ओर झुकता है।


दो बातें असम्भव है, एक तो अपने अंश से अधिक खाना, दूसरे मृत्यु से पहले मरना।