घर लेगया, और बड़ी उदारता से उसका आदर सम्मान किया। जब प्रातःकाल घातक ने विदा मांगी तो युवक ने अत्यन्त विनीतभाव से कहा कि यह आपही का घर है, इतनी जल्दी क्यों करते हैं। घातक ने उत्तर दिया कि मेरा जी तो बहुत चाहता है कि ठहरूं लेकिन एक कठिन कार्य करना है, उसमें विलम्ब हो जायगा। हातिम ने कहा यदि कोई हानि न हो तो मुझ से भी बतलाओ कौन सा काम है, मैं भी तुम्हारी सहायता करूं। मनुष्य ने कहा, यमन के बादशाह ने मुझे हातिम को वध करने भेजा है। मालूम नहीं, उनमें क्या विरोध है। तू हातिम को जानता हो तो इसका पता बता दे। युवक निर्भीकता से बोला हातिम मैं ही हूं तलवार निकाल और शीघ्र अपना काम पूरा कर। ऐसा न हो कि विलम्ब करने से तू कार्य्य सिद्ध न करसके। मेरे प्राण तेरे काम आवें तो इस से बढ़ कर मुझे और क्या आनन्द होगा। यह सुनते ही घातक के हाथ से तलवार छूट कर ज़मीन पर गिर पड़ी। वह हातिम के पैरों पर गिर पड़ा और बड़ी दीनता से बोला हातिम तू वास्तव में दानवीर है। तेरी जैसी प्रशंसा सुनता था उससे कहीं बढ़ कर पाया। मेरे हाथ टूट जायें अगर तुझ पर एक कंकरी भी फेंकूं। मैं तेरा दास हूं और सदैव रहूंगा। यह कह कर वह यमन लौट आया। बादशाह का मनोरथ पूरा न हुआ तो उसने उस मनुष्य का बहुत तिरस्कार किया, और बोला मालूम होता है
पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/७०
दिखावट