सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

आठवां अध्याय
चरित्र।

सादी उन कवियों में हैं जिनके चरित्र का प्रतिबिम्ब उनके काव्य रूपी दर्पण में स्पष्ट दिखाई देता है। उन के उपदेश उनके हृदय से निकलते थे और यही कारण है कि उनमें इतनी प्रबल शक्ति भरी हुई है। सैकड़ों अन्य उपदेशकों की भांति वह परमार्थ-ज्ञान का मार्ग दूसरों को दिखाकर स्वयं स्वार्थ पर जान न देते थे। दूसरों को न्याय, धर्म, और कर्तव्यपालन की शिक्षा देकर स्वयं विलासिता में लिप्त न रहते थे। उन की वृत्ति स्वभावतः सात्विक थी और कभी वासनाओं से उनका मन विचलित नहीं हुआ। अन्य कवियों की भांति उन्होंने किसी राज दरबार का आश्रय नहीं लिया। लोभ को कभी अपने पास नहीं आने दिया। यश और ऐश्वर्य्य दोनों ही सत्कर्म के फल हैं। यश दैविक है, ऐश्वर्य्य मानुविक। सादी ने दैविक फल पर सन्तोष किया, मानुविक के लिए हाथ नहीं फैलाया। धन की देवी जो बलिदान चाहती हैं उसकी सामर्थ्य सादी में नहीं थी।