पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(८३)

वह अपनी आत्मा का अल्पांश भी उसे भेंट न कर सक्ते थे। यही उनकी निभीकता का अवलम्ब है। राजाओं को उपदेश करना साँप के बिल में उँगली डालने के समान है। यहां एक पांव अगर फलों पर रहता है तो दूसरा कांटों में। विशेष करके सादी के समय में तो राजनीति का उपदेश और भी जोखिम का काम था। ईरान और बग़दाद दोनों ही देशों में अरबों का पतन हो रहा था और तातारी बादशाह प्रजा को पैरों तले कुचले डालते थे। लेकिन सादी ने उस कठिन समय में भी अपनी टेक न छोड़ी। जब वह शीराज़ से दूसरी बार बग़दाद गये तो वहाँ हलाकूख़ाँ मुग़ल का बेटा अवाक़ाख़ाँ बादशाह था। हलाकूख़ाँ के घोर अत्याचार चंगीज़ और तैमूर की पैशाचिक क्रूरताओं को भी लज्जित करते थे। अवाक़ाख़ाँ यद्यपि ऐसा अत्याचारी न था तथापि उसके भय से प्रजा थर थर कांपती थी। उसके दो प्रधान कर्मचारी सादी के भक्त थे। एक दिन सादी बाज़ार में घूम रहे थे कि बादशाह की सवारी धूम धाम से उनके सामने से निकली। उनके दोनों कर्मचारी उनके साथ थे। उन्होंने सादी को देखा तो घोड़ा से उतर पड़े और उनका बड़ा सत्कार किया। बादशाह को अपने वज़ीरों की यह श्रद्धा देखकर बड़ा कुतूहल हुआ। उसने पूछा यह कौन आदमी है। वजीरों ने सादी का नाम और गुण बताया। बादशाह के हृदय में भी सादी की परीक्षा करने का विचार पैदा हुआ। बोला