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पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/८९

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कर फ़रियाद की कि बाबा, यह बूढ़ा यात्री साधुओं को बैठने नहीं देता। मास्टर साहब ने साधुओं की डिगरी कर दी। भस्म और जटा की यह चमत्कारिक शक्ति देख कर सारे यात्री रोब में आ गये और फिर किसी को उनकी उस गाड़ी को अपवित्र करने का साहस नहीं हुआ। इसी तरह रीवां में लेखक की मुलाक़ात एक सन्यासी से हुई। वह स्वयं अपने गेरुवे बाने पर लज्जित थे। लेखक ने कहा आप कोई और उद्यम क्यों नहीं करते? बोले, अब उद्यम करने की सामर्थ्य नहीं, और करें भी तो कौन सा उद्यम करें। मेहनत मजूरी होती नहीं, विद्या कुछ पढ़ी नहीं, अब तो जीवन इसी भांति कटेगा। हां ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि दूसरे जन्म में मुझे सद्‌बुद्धि दे और इस पाखण्ड में न फँसावे। सादी ने ऐसी हज़ारों घटनायें देखी होंगी, और कोई आश्चर्य नहीं कि इन्हीं बातों से उनका दयालु हृदय पाखण्डियों के प्रति ऐसा कठोर हो गया हो।

सादी मुसलमानी धर्मशास्त्र के पूर्ण पण्डित थे। लेकिन दर्शन में उनकी गति बहुत कम थी। उनकी नीति शिक्षा स्वर्ग और नर्क, तथा भय पर ही अवलम्बित है। उपयोगवाद तथा परमार्थवाद की उनके यहां कोई चर्चा नहीं है। सच तो यह कि सर्वसाधारण में नीति का उपदेश करने के लिए इनकी आवश्यकता ही क्या थी। वह सदाचार जिसकी नीति दर्शन के सिद्धान्तों पर होती है धार्मिक सदाचार से कितने ही