विषयों में विरोध करता है और यदि उसका पूरा पूरा पालन किया जाय तो संभव है कि समाज में घोर विप्लव मच जाय।
लेकिन सादी कोरे नीतोपदेशक ही न थे, वह बड़े सभाचतुर, और विनोदशील पुरुष थे। उच्च विचार के मनुष्यों में विनोद एक गुण है। कोई पक्षी आठों पहर आकाश में नहीं उड़ सकता। शेख़ सादी के हास्य के संबन्ध में बहुत सी कथायें प्रचलित हैं, और एक अश्लील काव्य ग्रन्थ है जो उनका लिखा हुआ बतलाया जाता है। यदि इन कथाओं पर विश्वास करें और इस काव्य को सादी का रचा हुआ मान लें तो सादी को नीतोपदेश का अधिकार ही न रहे। सादी चतुर अवश्य थे और जिस तरह राजा बीरबल की चतुराई को प्रदर्शित करने में लोगों ने कितनी ही गन्दी कथायें उनके गले मढ़ दी हैं, उसी तरह सादी के विवेकहीन प्रशंसकों ने भी उनके नाम को कलंकित कर दिया है। वास्तव में वह अश्लील कवितायें उनकी नहीं होसकतीं। उन में उनकी अनूठी रचनाशैली का बिलकुल पता नहीं।
सादी ने सन्तोष पर बड़ा ज़ोर दिया है। जो उनके सदाचार शिक्षा का एकमात्र मूलाधार है। वह स्वयं बड़े सन्तोषी मनुष्य थे। एक बार उनके पैरों में जूते नहीं थे, रास्ता चलने में कष्ट होता था। आर्थिक दशा भी ऐसी नहीं थी कि जूता मोल लेते। चित्त बहुत खिन्न हो रहा था। इसी विकलता में कूफ़ा की मस्जिद