किसी अन्य कवि ने न देखा हो। उन्होंने जो कुछ लिखा है वह उनका अपना अनुभव है। उस समय पृथ्वी का जो भाग सभ्य समझा जाता था वह सदैव सादी के पैरों तले रहता था। वह बहुधा भ्रमण करते रहते थे और जो अनूठी तथा शिक्षाप्रद बातें देखते थे उन्हें अपने विचार-कोष में संग्रह करते जाते थे। यही कारण है कि शेख़ सादी की गुलिस्ताँ और बोस्ताँ का आज जितना आदर है उतना तुलसीकृत रामायण के सिवा कदाचित् किसी अन्य ग्रन्थ का न होगा। जिसने कुछ थोड़ी सी भी फ़ारसी पढ़ी है वह सादी से अवश्य परिचित है। उनकी दोनों पुस्तकें प्रत्येक पुस्तकालय, प्रत्येक विद्यालय तथा प्रत्येक विद्याप्रेमी के आदर की सामग्री रही हैं। शेख़ सादी केवल पद्य-रचना ही न करते थे, वह गद्य रचना में भी अद्वितीय थे। गुलिस्ताँ का जितना आदर है उतना बोस्ताँ का हर्गिज़ नहीं है। सादी ने स्वयं गुलिस्ताँ पर अपना गर्व प्रकट किया है। बोस्ताँ के टक्कर की पुस्तकें फ़ारसी में वर्तमान हैं। लेकिन गुलिस्ताँ की समानता करनेवाली कोई पुस्तक नहीं है। अनेक बड़े बड़े लेखकों ने इस ढङ्ग की पुस्तकें लिखने का प्रयत्न किया, किन्तु सफल न हुए। इसकी भाषा इतनी मधुर, लेख-शैली इतनी हृदय ग्राही, और वाक्य-रचना ऐसी अनूठी है कि नीति-विषय पर ऐसा ग्रन्थ संसार भर में न होगा। ईसप की नीति-कथायें बहुत प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार पंचतंत्र और हितोपदेश की कथाओं का भी बहुत प्रचार है, पर इन पुस्तकों में
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