पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१०१

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6 " हम सब यानी तीनों आनन्दमें हैं । शंकरसे कहना कि तबीयत न बिगाड़े, खत लिखे । बापूके आशीर्वाद" बापके बायें हाथकी कोहनीसे सूपरकी हड्डीमें दर्द होता है । और दायें हाथके अंगठेमें दर्द है । तो भी मालूम होता है अन्होंने १३-४-३२ पिछले तीन दिनसे ३७५ तार कातनेकी प्रतिज्ञा की है । डॉ. मेहता कहते हैं कि अिन दोनों हाथोंको आराम दीजिये। मगर बापू कहते हैं कि चरखेसे दर्द नहीं बढ़ता ! मालूम होता है कि राष्ट्रीय सप्ताहके कारण कताी पर ज्यादा जोर डाल रहे हैं । आज थक गये थे । आम तौर पर तीन बजे कताी पूरी हो जाती है । आज तीन बजे पूरी नहीं हुी। लेकिन यह कह कर जमे रहे कि आज सप्ताहका आखिरी दिन है और शाम तक ५०० तार न कते तो ठीक नहीं । और चार बजे पूरा किया। राष्ट्रीय सप्ताहमें विशेष आग्रहके साथ ज्यादा काम करनेकी कोशिश होती है । मुझे तो औसा लगता है कि मेरा जो नित्यक्रम चलता है वही हमेशा चलता रहे तो भगवानकी कृग हो । जिन्दगीका अक भी दिन, अक भी घड़ी आलस्यमें न जाय, तो कोसी वार-पर्व खास तौरपर पालनेकी जरूरत ही न रहे । स्वरूपरानी नेहरूको जो मार पड़ी, असके बारेमें बापूने यह माननेसे अिनकार ही कर दिया कि यह पुलिसका काम हो सकता है। दो तीन अनुमान लगाये थे। आज स्वरूपरानीने खुद ही प्रकाशित किया है कि मार पुलिसकी . ही थी । यह जानकर बापू अवल झूठे हैं । " लालाजी पर जानबूझ कर मार नहीं पड़ी थी, तो भी अस पर देशभरमें खलबली मच गयी थी । यह मार तो जवाहरलालकी माता पर जानबूझ कर ही पड़ी होगी न! फिर भी देशमें कोजी पुण्यप्रकोप नहीं दीख पड़ता। 'लीडर' ने भी कुछ नहीं लिखा ? बापूने ये अद्गार प्रकट किये। वल्लभभाभी कहने लगे "खलबली मचानेवाले हम सब तो अन्दर बैठे हैं । 'लीडर' ने जो लिखा असमें कोी दम नहीं है ।" बापू कहने लगे मगर लिखा भी है ?" " लिखा है, पर असे पढ़ कर क्या करेंगे ?" बापूने कहा नहीं, पढ़कर सुनाअिये ।" सुनकर अन्हें काफी असन्तोष हुआ। बोले " अिसे तो समतोल मस्तिष्कवालेकी पदवी मिली है न! आज ही सुबह उस पत्रकारने कहा सो हमने पढ़ा था न कि 'हिन्दू' और 'लीडर' अखबारोंके लेख पुख्ता कहला सकते हैं ?" " “ ९४