पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१०५

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6 की बात परसे जो निर्मल महाराष्ट्री सेवक हमें मिले हैं, अनकी बात निकली । बापूने कहा अिनमें देव और दास्ताने पहली श्रेणीके माने जायेंगे । विनोबा और काकाको कौन महाराष्ट्री कहेगा ? फिर काकाके बारेमें बापूने कुछ स्मरणीय अद्गार प्रगट किये .. काकाका अनुभव जैसा मुझे पिछली बार जेलमें हुआ, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था । काकामें महाराष्ट्रीयता रही ही नहीं । काकाकी अपार मृदुता तो मैं जेलके बाहर शायद ही देख पाता । तुम कभी काकाके रोनेकी कल्पना कर सकते हो ? मैंने अन्हें दड़ दड़ आँस गिराते देखा । की मौकों पर हमारे बीच वादविवाद होता । काका मुझे कहते 'मुझमें कभी कुटे हैं । अिन सबको आप जैसे जैसे देखते जायें, वैसे वैसे निर्दय बनकर आपको मुझे कहना है और सुधारना है।". मैंने कहा था यह तुम मुझमें जो विश्वास रखते हो, 'असका मैं पूरा अपयोग करूँगा।' और जिस पर अमल करके जब कभी मेरी तरफसे कड़ी आलोचना होती, तो काका अपनी भूल मानकर आँस गिराते । सत्याग्रहके सिद्धान्त तो काका घोल कर पी गये हैं। सिर्फ अनके स्वभावमें कुछ अनिश्चिततायें औसी हैं कि सामने- वाले पर जितना असर पड़ना चाहिये अससे कम पड़ता है। देखो न जब यहाँ आये, तो कुछ बातोंमें झुन्हें पूर्ण आत्मश्रद्धा ही नहीं थी; कहते कि यह काम मुझसे नहीं होगा, वह काम करनेसे मेरी साँस चढ़ जायगी। ९६ पौण्ड वजन लेकर आये और बहुत कमजोरी महसूस करते थे। मैंने अनसे काम करना शुरू कराया, चलना फिरना शुरू कराया, खानापीना शुरू कराया और ज्यादा नहीं तो बीसेक पौंड वजन बढ़ाया । मुझे लगता है कि अनके साथियोंने भी अन्हें अपंग कर डाला था । वह अपंगपन यहाँ जाता रहा ।" अक दिन काकाके लिओ डोीलके पक्षपातके बारेमें कहने लगे ." यदि डोऔलको काकाके प्रति खुब पक्षपात हो, तो जिसमें आश्चर्य नहीं । डोमीलने काकाको मुसलमानोंक लिसे सत्याग्रह करते देखा अिसी सत्याग्रहकी मीमांसा डोमीलने अिनसे सुनी होगी, अनेक चर्चायें हुी होंगी, फिर तो डोील जैसा आदमी अिनके गुणोंसे और शक्तिले आकर्षित हो तो असमें आश्चर्य ही क्या ?" जिसमें आश्चर्य नहीं है तो यहाँ यह भी कहा जा सकता है कि काकाके सहवासको बापूने आकाश दर्शन सम्बन्धी अपने लेखमें 'सत्संग' बताया है, और मुझे भीतर ही भीतर महसूस हुआ है कि बापू अिस सत्संगके लिओ अक्सर अत्सुक रहते हैं ! यह सत्संग मेरे पास तो जिन्हें क्या मिले ? मुझे डर है कि वह वल्लभभाीके पास भी नहीं मिलता । १००