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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१०६

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1 "कैसा - सोमा रसोभियेका परिचय कराया जा चुका है। मारुति वार्डर, जो बापूकी सेवामें रखा गया है, आज तक मोटी बुद्धिका बेपट्टा और १६-४-३२ असीकी भाषामें 'अनाड़ी गंवार' माना जाता था । अिस बेचारेको मोटे मोटे काम सूझ पड़ते हैं। बारीक काम सूझ नहीं पड़ते । और हमारा वह अमीर ठाकरड़ा असे बहुत बार कहा करता अनाड़ी है । किसनी अलटी पकड़ता है, तो अभी तक सुलटी पकड़ना सोखता ही नहीं ।" यह मोटी बुद्धिका अनाड़ी आज दोपहरको मेरे पास आया और असने जो संभाषण किया, अससे मेरी आँरखें खुल गयीं और आँसुओंसे भीग गयीं । मारतिमें कितनी कोमलता है, यह मैने आज तक न जाना । जिस पर मुझे खेद हुआ । असहयोगियोंकी भीड़ होनेके कारण सरकारको पुराने अपराधियोंको छोड़ना शुरू करना पड़ रहा है। जिस तरह लगभग पौने चारसी कैदियोंका छुटकारा होगा । मारुतिने मुझे बहुत दफ़े पूछा " अिसमें तो बहुतसे बदमाशोंको भी सरकार छोड़ने लगी हैं। यह किस लिभे?" सरकारको अिनकी बदमाशी सहन हो जाती है, हम लोगोंकी बर्दाश्त नहीं होती। असे अितना कह कर मैं शान्त हो जाता । अिन भाग्यशाली लोगोंमें मारुतिको भी बारी आमी और असे कल छूटना है, यह जान कर वह मेरे पास आया । मुझे खबर दी। मैंने कहा " मारुति, हमें भूल तो नहीं जायगा न ?" मारुति गद्गद हो गया और बोला " जन्म जन्मके पुण्य किये होंगे, तब नेल-जैसी जगहमें महात्माके दर्शन हुआ। सो कौन भूल सकता है ? मैं बाहर होता तो कभी यह दर्शन पा ही नहीं सकता या। अिसके बदलेमें मैं क्या करूँ ? अपना आभार किस तरह प्रगट करूँ ? मैं तो गरीब आदमी हूँ, अक खेत है, जैसे तैसे गुजर करूँगा। मगर मुझे महात्माके चरणोंमें कुछ भेंट करनेका लोभ है । अिन्हें किसी बातकी कमी नहीं। अिनकी जैसी स्थिति है कि ये जो माँगे सो सरकार और लोग जिनके सामने हाजिर कर सकते हैं। मगर मुझ गरीवको अितना लोभ है कि मैं अनके लिखे कुछ न कुछ भे । आप मुझे बताअिये कि क्या भेनँ ?" मैंने कहा ." भले आदमी, तुझे कुछ भी नहीं भेजना है। तुने यहाँ जो प्रेम भरी सेवा की, वह क्या कम है ? " मारुतिने फौरन जवाब दिया " अरेरे ! भिसे आप सेवा कहते हैं ? महात्मा न होते तो यहाँ और कुछ मेहनत किये बिना रोटियाँ कौन देनेवाला था ? सरकारने काम सौंपा और मैंने किया, अिसमें मुझे यश किस बातका ? यश तो तब हो जब मैं स्वतंत्र हो और स्वेच्छासे झुनकी सेवा कर पाश्रू । मैं सेवा करनेके लायक ही कहाँ हूँ ? ये कौन हैं ? करोड़ों आदमी जिन्हें देवता मानकर पूजते हैं, जिन्होंने खुद जेलमें आकर हमें छुड़वाया। कलियुगका यह कैसा कौतुक है ? अिन्होंने कितने कष्ट झुठाये हैं ? जिनके साथियोंने कितने कष्ट सहन किये हैं ? प्यारेलाल थे वे बेचारे १०१