पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१२

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"चलो, हरिः ॐ श्री सदगुरवे नमः । स्वप्नमें भी यह खयाल न था कि यह दिन मेरे भाग्यमें होगा। हाँ, अक: दिन नासिकमें असा सपना जरूर आया था कि मैं यरवदामें १०-३-३२ हूँ। अकाओक मुझे बापके पास ले जाया गया और मैं यापके पैरों पड़कर रोने लगा, और पता नहीं क्या हो गया कि आँर रोकनेसे भी नहीं रुके । रोचने सुबह आकर कहा कि तुम्हारी बदली हुी है । अक घंटेमें तैयार हो जाओ।" मैंने पूछा "कहाँ ?" तो वह बोला " तुम जानकर खुश होगे और मुझे धन्यवाद दोगे । मगर मुझसे बताया नहीं जा सकता ।" मैंने डॉक्टर चन्दूलालसे मिलनेकी माँग की, मगर अिजालत नहीं मिली । नौ बजे नासिकसे बैठे । मेरे साय जो पुलिसवाले थे, वे ही कुछ दिन पहले विट्ठलभाभीको यहाँ छोड़ गये थे । अिनमेंसे अकसे पुरानी जान पहचान थी । बापू जब लॉर्ड रेडिंगसे मिलने गये तत्र -तारीख भी अिस आदमीको याद थीः १७ जून १९२० - वह सर चार्ल्स अिन्सका खानसामा या । फिर वह यूर्वेक, रा. सा. गुणवंतराय देसाी वराके साथ रहकर पुलिसमें भरती हो गया । असने मुझे शिमलामें देखा था, विट्ठलभाीके यहाँ भी देखा या । असकी स्मरण शक्ति भी खूब थी। जब अकबरअली सावरमतीमें मिला, तो असकी आँखें भर आयीं और असने अपनी कोठरीमें बन्द होकर कहा " मेरी दुआ है कि आपको गांधीजीके साथ रखा जायगा ।" तब मुझे लगा था ." तेरी दुआ तो हो सकती है, मगर मैं वह नसीब कहाँसे ला?" असने कहा था लेकिन फिर भी मेरी दुआ है।" अकबरअलीके बारेमें क्या क्या नहीं सुना या? लेकिन असने मुहब्बत दिखानेमें कसर नहीं रखी और असकी दुआ ही फली ! प्यारेलालने तो नासिकमें ही सबसे कह दिया था कि हम मार्टिनके साथ अिन्तजाम कर आये हैं । यह मुझे तो गप्प मालूम हुी थी। लेकिन यह भी सच्ची बात थी। दरवाजे पर जरा कड़वा स्वागत जो हुआ, तो असा सोच लिया था कि नासिकसे असने पिण्ड छुड़ानेके लिअ मेरी बदली की है, और बापूके दर्शन होंगे ही नहीं । असके बजाय वहाँ तो कटेली हँसते हँसते आये और कहने लगे कि मेरे साथ चलिये । हमें आज ही चार बजे खबर मिली है कि आपको महात्माजीके ५