पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१२०

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और दृयता प्राप्त होती है । तुम्हें असी पुस्तकें पढ़नी चाहिये, जो अिस मुख्य चीजके समझनेमें सहायक हों । तुम्हें असी संगतिमें रहना चाहिये, जिसमें तुम्हें सदा मीश्वरके हाजिर नाजिर होनेका खयाल रहे । 'नीतिनाशके मार्ग पर' नामकी मेरी किताबमें ताजी हवा और कटिस्नान वगैराके बारेमें जो सूचनायें दी गयी हैं, सुन पर अमल करो। ये सब बातें नियमितता और लानसे करो। फिर स्खलन हो तो असकी चिन्ता न करो, मगर विश्वास रखो कि तुम्हारा प्रयत्न सफल होगा ही। अक अम. ओ., बी. अस-सीने लिखा "बहुत विशान पढ़ने के बाद श्रीश्वर पर श्रद्धा नहीं जमती, मगर असा लगता है कि होनी चाहिये । अिसका क्या 95 अपाय है ?" असे लिखा: "I have your pathetic letter. Seeing that God is to be found within, no research in physical sciences can give one a living faith in the Divine. Some have undoubtedly been helped even by physical sciences, but these are to be counted on one's fingertips. My suggestion therefore to you is not to argue about the existence of Divinity, just as you do not argue about your existence, but simply assume like Euclid's axiom, that God is, if only because innumerable teachers have left their evidence and what is more their lives are an unimpeachable evidence. And then as evidence of your own faith, repeat TIHAIR every morning and every evening at least for quarter of an hour each time and saturate your- self with Ramayana reading. तुम्हारा करुण पत्र मिला। श्रीश्वर तो अन्तरमें है । अिसलि भौतिक विज्ञानके कुछ भी संशोधन किये जायें, तो भी अनसे भीश्वर पर जीवित श्रद्धा नहीं हो सकती । अलबत्ता, कुछ लोगोंको भौतिक विज्ञानसे जरूर मदद मिली है, मगर, सुनकी गिनती अंगुलियों पर की जा सकती है । तुम्हें मेरा सुझाव तो यह है कि ीश्वरके अस्तित्वके बारेमें दलील न करो, हम अपनी हस्तीके बारेमें दलील नहीं करते । युक्लिडके स्वयंसिद्ध सूत्रकी तरह यह मान ही लो कि मीश्वर है, क्योंकि असंख्य धर्मात्मा असा कह गये हैं और सुनका जीवन अिप बातका असंदिग्ध प्रमाण है । तुम अपनी श्रद्धाके प्रमाण स्वरूप रोज सुबह शाम पाव पाव घण्टे रामनाम जपो और रामायणके पाठमें रमे रहो ।" 11