सत्य तुम्हारे अन्दर और तुम्हारे पक्षमें है। तुम्हारा यह बहिष्कार असकी अचूक निशानी है। मगर जब तुम अकान्तमें भगवानके ध्यानमें मग्न हो, अस वक्त अगर जैसी आवाज न सुनो कि 'तु सच्चे रास्ते पर है', तो मेरी रायकी कुछ भी कीमत न मानी जाय । सच्ची कसौटी अन्तरकी आवाज है, दूसरी कोसी नहीं।" अक बंगाली साधकको ब्रह्मचर्यके बारेमें लिखा: “I have your letter. Brahmacharya is a mental state. It is undoubtedly helped by abstentiousness in all respects. But diet plays the least part in giving one the necessary mental state. Not that wrong diet will not hinder progress. What I want to say is that right diet, taken in moderation, is not the only thing in the observance of brahmacharya though it is undoubtedly ône of the necessary things. Indul- gence of the palate will be the surest sign of weak mental state which is repugnant to brahmacharya. The sovereign remedy for the observance of brahmacharya is realization that the soul is a part of the Divine and that the Divine resides within us. A heart grasp of the fact induces mental purity and strength. You should therefore read such books as would enable you to grasp the central fact, cultivate such companionship as would constantly make you think of the Divine presence and follow all the directions given about fresh air, hip baths, etc. in my book called 'Self- restraint vs. Self-indulgence'. And when you are doing all these things regularly and industriously, do not brood over all that happens, but have confidence that success is bound to attain your effort." " तुम्हारा पत्र मिला । ब्रह्मचर्य मनकी स्थिति है। अलबत्ता, सब तरहके निग्रहसे असे मदद जरूर मिलती है । आवश्यक मनःस्थिति प्राप्त करने में आहार कमसे कम सहायक होता है, मगर गलत आहारसे प्रगति रुकती तो है ही। जिस परसे मैं यह कहना चाहता हूँ कि योग्य आहार परिमित मात्रामें लिया जाय । लेकिन यह अक ही साधन ब्रह्मचर्यके पालनमें मदद देनेके लि काफी नहीं । हा, बहुतसे जरूरी साधनोंमें से अक माना जा सकता है । जीभका चटोरापन कमजोर मनःस्थितिका लक्षण है, और यह चीज़ ब्रह्मचर्यके लिये बाधक है । ब्रह्मचर्यके पालनके लिझे रामबाण उपाय तो अिस बातका अनुभव होना है कि यह जीव परमात्माका ही अंश है और परमात्माका घमारे हृदयमें वाम है । हम यह चीज समझने लग जाये, तो अससे मनकी शुद्धि
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