पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१२८

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CC - । आनेवाला कोमी नहीं है। अिसके सामने स्त्री-बच्चे वगैरा बहुतोंका विरोध है । और यह आदमी बड़ी व्यवस्था-शक्तिवाला और सत्यका जबरदस्त पुजारी है।" आज शामको 'अब हम अमर भये, न मरेंगे' गीत गाया। बापू कहने लगे यह भजन निकाल देने लायक है । अमर होनेकी क्या बात है, जो कहें कि अमर भये ? यह आगे चलकर कारण बताता है कि मिथ्यात्व छोड़ दिया, तो अब देह क्या धारण करें ? फिर मैं तो यह भी माननेवाला हूँ कि अिस देहमें रहते मोक्ष नहीं हो सकता । और यह बात कहनेकी नहीं हो सकती । हमारे लिखे गानेकी बात तो हो ही नहीं सकती। भक्तिके जो पद हों, वे हमारी भजनावलिमें काम आ सकते हैं। जिसमें तो जनोंका तर्कवाद है, भक्तिरस नहीं है । और हमें समाजके लिअ भक्तिके भजन रखने चाहिये ।" मैंने असके अच्छे भाव बताकर बचाव किया । तब वापू कहने लगे. "ये दूसरे भजनोंमें भी आते हैं।" अिसी तरह बापूने कहा- 'तबहा निष्कलमहम्' गानेके बारेमें भी मेरा पुराना झगड़ा है ही । अक बार अन्होंने यह कहा था कि 'दिलमें दिया करो दिया करो' यह भजन भी मुझे पसन्द नहीं है । मैं : अगर यह पसन्द नहीं है तो 'हरिने भजता हजी कोभीनी लाज जा नथी जाणी रे में तो भक्तोके नामके सिवा और पहली लकीरके सिवा दूसरा कुछ भी नहीं है । तब बापू कहने लगे ." मगर यह सारी भक्तमाला मीठी लगती है।" बहनोंको आज बहुत लम्बा पत्र लिखा । असका महत्वका भाग यह है. “पिण्ड ब्रह्माण्डका प्रश्न बहुत बड़ा पूछा गया है। मगर थोड़ेमें समझाता हूँ। अभी यह समझ लेना चाहिये कि पिण्डका मतलब यह देह है। और ब्रह्माण्डका अर्थ है यह पृथ्वी । अब जो कुछ हमारे शरीरमें है, वह सब पृथ्वीमें है; और जो शरीरमें नहीं, वह पृथ्वीमें भी नहीं । शरीर मिट्टीका बना है, तो पृथ्वी भी मिट्टीकी बनी है । पृथ्वीमें पाँच तत्व हैं, तो शरीरमें भी पाँच तत्व मौजूद हैं । पृथ्वीमें तरह तरहके जीव हैं, तो शरीरमें भी हैं । शरीर नष्ट होता है और पैदा होता है तो पृथ्वीका भी अिसी तरह रूपान्तर होता रहता है । जिस तरह अिस विचारका और भी विस्तार किया जा सकता है । मगर अितने परसे हम यह कह सकते हैं कि हमारे शरीरका हमें सच्चा ज्ञान हो जाय, तो पृथ्वीका भी सच्चा ज्ञान हो जाय । अिस दृष्टि से हमें ज्ञान प्राप्त करनेके लिओ बहुतसी बेकार कोशिशें करनेकी जरूरत नहीं है । शरीर तो अपने पास है ही । असका शान प्राप्त कर लें, तो हमारा बेड़ा पार लग जाय । पृथ्वीका ज्ञान प्राप्त करनेका लोभ ररखेंगे, तो वह हमेशा अधूरा ही होगा; और अिसीलिओ ज्ञानी हमें सिखा गये हैं कि जो पिंडमें है वही ब्रह्माण्डमें है । और अगर हम आत्मज्ञान प्राप्त १२५ 1