आदमीने लड़ाीमें काम किया है और हमारी लड़ाीको वह बिलकुल लड़ाभी समझकर ही सब काम कर रहा है ।" फिर थोड़ी देर ठहर कर बोले- "दो ओक साल जिनका यही हाल रहे, तो हमारा सारा मैल और सारी गंदगी दूर हो जाय और फिर हम अच्छी तरह अधिकार भोगनेके लायक बन जायँ ।" मगर बाप, क्या जैसा लगता है कि दो साल रहना पड़ेगा ? "कोी अटकल काम नहीं देती । मगर रहना पड़े तो बड़ी बात नहीं । और यहाँ हमें तकलीफ ही क्या है ? पड़े हैं, कामकाज करते हैं और शान्तिसे दिन निकाल रहे हैं । मैंने कहा- G बापू कहने लगे > हरिलालका दुःखद पत्र आया है। असमें मनुको बलीबहनके पाससे छुड़वानेकी माँग की गयी है । बापूको कसूरवार माना है । बलीबहनके हमलेकी शिकायत की है । बापूने असे लम्बा पत्र लिखा है। मगर असका पिछला हिस्सा समुद्रकी तरह क्षमासे झुमड़ते हुओ पिताके दिलसे टपकनेवाले खुनकी बूंदोंकी तरह है " मैं अभी भी तेरे अच्छे बननेकी आशा नहीं छोडूंगा, क्योंकि मैं अपनी आशा नहीं छोड़ता । मैं मानता रहा हूँ कि तु जब बाके पेटमें था, अस वक्त तो मैं नालायक था । मगर तेरे जन्मके बाद मैं धीरे धीरे प्रायश्चित्त करता आ रहा हूँ। अिसलिओ बिलकुल आशा तो कैसे छोड़ दूं ? अिसलिओ जब तक तु और मैं जीवित हैं, तब तक अन्तिम घड़ी तक आशा रखूगा। और अिसलिओ अपने रिवाजके विरुद्ध तेरा यह पत्र रख छोड़ रहा हूँ, ताकि जब तुझे सुध आये तब तू अपने पत्रकी झुद्धतता देखकर रोये और अिस मुर्खता पर हँसे । तुझे ताना मारनेके लिओ यह पत्र नहीं रख छोड़ता हूँ। लेकिन श्रीश्वरको औसा मौका बताना हो तो खुद अपनेको हँसानेके लिओ यह पत्र रख छोड़ता हूँ। दोषसे तो हम सब भरे हैं । मगर दोषमुक्त होना हम सबका धर्म है । तू भी हो।" आज 'हिन्दू में अक अंग्रेजका बड़ा सुन्दर लेख आया है। असने देशकी हालतका हूबहू चित्र खींचा है । नाम दिया होता, २८-४-३३२ तो लेखकी कीमत बढ़ जाती । सरोजिनी देवीके यहाँ आनेकी खबर मिली है । गुलजारीलाल की बीमारीकी बात करके कहने लगे “ीश्वर असे बचा ले तो अच्छा । गुजरातमें ओतप्रोत हो जानेवाला प्यारेलालकी तरह यह दूसरा पंजाबी है । प्यारेलालसे भी अक तरहसे बढ़कर है, क्योंकि प्यारेलालके रास्तेमें १२४
पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१२७
दिखावट