पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१३९

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6 । " में तीन अिंचका घाव कर दिया है। सुपरिष्टेण्डेण्ट कहने लगे "अिसकी सजा कोड़े हैं । मगर यह नहीं दी । मैंने सिर्फ चेतावनी दी है कि अब अगर असा हुआ, तो मजबूर होकर यह सजा देनी पड़ेगी ।" वह बेचारे कहने लगे " मैंने अपनी सारी नोकरीमें दो या तीन बार कोड़की सजा दी है। मुझे यह फाँसीसे भी नुरी लाती है । जिन दो मामलोंमें दी थी, वे.भयानक मामले थे। ओक कैदीने दूसरेकी आँख लगभग फोड़ ही डाली थी। अिस आदमीकी भलमनसाहत अिस किस्सेमें साफ दिखाी देती है । सरोजिनीने यशोदाको मृत्यु पर सुन्दर पत्र लिखकर सरदारको दिया। मणिबहन (परीख), शंकरलाल, वनु, मोहन और दीपक मिलने आये । मैंने मुलाकात की । जैसा लगा जैसे घरके ही आदमी आये हों । नरहरिका वजन २८ पौण्ड घट गया है, अिसकी परवाह नहीं है । मगर वहाँके दुष्ट वातावरणसे तकलीफ़ होती है। बातें करते करते मणिबहनकी आँखोंमें पानी आ गया । आज मालवीयजीने सुन्दर बयान प्रकाशित कराया है। बापू कहने लगे बहुत शोभा दे, असा बयान है । जिसमें अक भी कमजोर बात नहीं है। और पंडितजीके लिअ यह छोटेसे छोटा बयान कहा जायगा। सरकारको चुनौती देने जैसा ही कहा जा सकता है । " मालवीयजीको छोड़ देने के लिओ 'लीडर' सरकारको बधाी देता है और सरकारके अिस कार्यका अदार बताता है । "मालवीयजीको फाँसीकी सजा दी होती और बादमें असे आजीवन देशनिकालेमें बदल दी होती, तो असे भी 'लीडर' अदारता ही बताता न? जैसा है।" मताधिकार समितिकी सिफारिशोंके वारेमें अखबारोंमें जो अटकलें लगाी जा रही हैं, अनपर बापने अक सूचक वाक्य कहा ५-५-३२ • भी विशाल मताधिकार हो, मगर सत्ता न हो तो वह निकम्मा है। कितना ही संकीर्ण मताधिकार हो, लेकिन सत्ता हो तो वह काम देता है । आज दोनों हाथोंसे चलानेका चरखा (मगनचरखा) आया। अिसे बापू कलसे चलाना शुरू करनेवाले हैं। मणिबहन (परीख), धीरू, कुसुम और गिरधारी बापूसे मिलने आये । बापूने कहा कि मणिबहन सारे समय रोती रहीं। मेरे सामने झुनका धीरज रहा, लेकिन बापके सामने नहीं रहा । बापूके सामने कैसे रहता ? जिसके पास ज्यादा तसल्ली मिलती है, असके पास मनुष्य ज्यादा गद्गद हो जाता है। बापू बोले. "कितना १३४