ओक अिब्राहीमजी राजकोटवाला नामके मुसलमानने लिखा कि बुद्धिसे मीश्वर साबित नहीं हो सकता! असे बापूने लम्बा पत्र लिखा, क्योंकि असने लिफाफा भेजकर जवाब माँगा था : " तुम्हारा पत्र मिला । श्रीस्वरकी इस्तीके लिओ बुद्धिसे प्रमाण माँगो, तो कहाँसे मिले ? कारण ीश्वर बुद्धिसे परे है। अगर असा कहें कि बुद्धिसे आगे कुछ नहीं है, तो जरूर मुश्किल पैदा होती है । बुद्धिको ही सर्वोत्तम पद दे दें, तो हम बड़ी मुश्किलमें पड़ जाते हैं। खुद हमारा जीव या आत्मा ही बुद्धिसे परे है । असका अस्तित्व सिद्ध करने लिओ बुद्धिके प्रयोग हुआ है। यही बात मीश्वरके बारेमें भी कही जा सकती है । मगर जिसने आत्मा और मीश्वरको बुद्धिसे ही जाना है, असने कुछ भी नहीं जाना । बुद्धि भले ही किसी समय ज्ञान प्राप्त करने में मददगार हुी हो । मगर जो आदमी वहीं अटक जाता है, वह आत्मज्ञानका लाभ तो बिलकुल नहीं झुठा सकता। जिस तरह कोी अनाज खानेके फायदे बुद्धिसे जानता हो, तो वह अनाज खानेसे होनेवाला फायदा नहीं झुठा सकता । आत्मा या ओश्वर जाननेकी चीज नहीं है । वह खुद जाननेवाला है। और अिसीलिये वह बुद्धिसे परे है। औश्वरको पहचाननेकी दो मंजिल हैं। पहली मंजिल श्रद्धा और दूसरी तपा आखिरी मंजिल अससे होनेवाला अनुभव-शान । दुनियाके बड़ेसे बड़े शिक्षकोंने अपने अनुभवोंकी गवाही दी है। और जिन्हें दुनियामें मूर्द रामह कर अलग निकाल दें, उन्होंने भी अपनी श्रद्धामा सदूत दिया है। जिनकी श्रद्धा पर हम अपनी श्रद्धा निर्माण करेंगे, तो किसी दिन अनुभव भी मिल जायगा । अक आदमी दूसरेको आँखोंसे देखे, मगर बहरा होनेके कारण असकी कुछ भी सुने नहीं और फिर कहे कि मैंने असे सुना नहीं, तो यह ठीक नहीं है । सिमी तरह बुद्धिसे ीश्वरको नहीं पहचाना जा सकता, यह वान्य अशानदचक है । जैसे सुनना आँखा विषय नहीं है, वैसे ही जीवरको पहचानना अिन्द्रियोंका या बुद्धिका विषय नहीं है । अिसके लिओ दूसरी ही शक्ति चाहिये और वह है अचल श्रद्धा । हमने देख लिया कि बुद्धिको क्षण क्षणमें भरमाया जा सकता है । लेकिन सच्ची श्रद्धाको भरमा सके, असा मामीका लाल आज तक पृथ्वी पर देखने में नहीं आया ।" आज बापने मगन चरखे पर दो अक घण्टे मेहनत की और आखिरमें २४ तार निकाले तब अन्हें शान्ति हुभी । वल्लभभाभी सारे ६-५३३२ समय हँसते रहे और कहते रहे - "जितना कातेंगे अससे ज्यादा विगाहेंगे। "मेरे बायें हाथसे कातनेके बारेमें भी हसनेवाले आप ही थे न १ देखिये, यह तार निकलने लगा। अब आप जिस तरफ नहीं देखेंगे, तब तक ये तार निकलते ही रहेंगे।" बापू कहते १२५
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