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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१४२

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. हमें यह भी समझ लेना चाहिये कि जेलमें जो आमदनी होती है वह देशकी . सम्पत्ति है, जो खर्च होता है देशका होता है, फिर भले ही वह किसीके भी हायसे होता हो। अिसलिमे जो कुछ आमदनी हो सके, वह करनेमें हमें खुशी होनी चाहिये । और साग न खानेका अका हुआ हो, तो असे सुधार लेना चाहिये ।"

बापू कहने लगे. 66 यहाँकी बिल्ली के बच्चे अब बिलकुल हिल गये हैं। प्रार्थनाके समय बापूकी गोदमें बैठ जाते हैं, हमारे साथ खेल करते हैं और खानेके वक्त तो कीकाकीक ही मचा डालते हैं । अक्सर बापूके पैरोंमें चक्कर लगाते हैं। वल्लभभाभी अन्हें चिलाते हैं और तारकी जालीके नीचे बन्दकर आनंद लेते हैं। आज अक बच्चा बहुत घबराया । आखिर वह जालीको सिर पटकते पटकते बरामदेके सिरे तक ले गया और वहाँसे बाहर निकला । यह असने अपनी बुद्धिसे काम लिया। बेचारा घबराया हुआ था, धीरे धीरे चलता था । बापूको दया आ गयी। फिर दूर जाकर असने शौचकी तैयारी की । जमीन खोदी, शौच करके असे ठेका । वहाँ मिट्टी बहुत नहीं थी, अिसलिमे दूसरी जगह गया और वहाँ यह क्रिया सन्तोषपूर्वक की और दूसरे बच्चोंने ढंकनेमें असे मदद दी ! " अिन बच्चों पर आकाशसे फूल बरसने चाहिये ।" मीराबहनको पत्र लिखा असमें भी अिसका निर्देश करनेका मौका ले लिया : What I said about my being a hindrance is perfectly true. I may help to start the thing but not being able to live up to it must hinder further progress. The ideal of voluntary poverty is most attractive. We have made some progress but my utter inablity to realize it fully in my own life has made it difficult at the Asharm for the others to do much, They have the will but no finished object lesson. We have two delightful kittens. They learn their lessons from the mute conduct of their mother who never has them out of her sight. Practice is the thing. And just now I fail so helplessly in so many things. But it is no use mourning over the inevitable." " मैंने जो यह कहा है कि मैं रुकावट बन जाता हूँ बिलकुल सच है। अकाध प्रवृत्ति शुरू करनेमें मैं मददगार हो सकता हूँ, मगर मैं खुद असी तरह न चल सकूँ, तो आगेकी प्रगति जरूर रुक ही जायगी । स्वेच्छापूर्वक दरिद्रताका आदर्श बहुत आकर्षक है । हमने जिसमें कुछ न कुछ प्रगति भी की है । मगर मेरे अपने मामलेमें अिस पर पूरी तरह अमल करनेकी मेरी भारी अशक्तिके १३७