66 आज गंगाबहनकी मृत्युके समाचार आये । अन्हें पता चल गया कि मौत आ रही है, अिसलि होशियार हो गयी थी और रामनाम जपते जपते विदा हुयीं । बापूने बड़ी गंगावहनको पत्र भेजा असमें लिखा - हम कह सकते हैं कि गंगाबहनने जीकर आश्रमको सुशोभित किया और मरकर भी आश्रमको सुशोभित किया ।" आश्रमको तार दिया : "We were all touched learn Gangaben's death. Am happy that she lived well and died well with faith everlasting. No wonder Totaramji is happy." "गंगाबहनकी मृत्युके समाचार जानकर हम सबको दुःख हुआ। मुझे खुशी है कि अन्होंने अमर श्रद्धाके साथ जीना जाना और मरना जाना । तोतारामजी आनन्दमें है, जिसमें आश्चर्य नहीं ।" खबर आयी तब बापने कहा " देखो, अिस निरक्षर स्त्रीको ! जिसकी मौत कैसी है ! दोनोंने आश्रमको सुशोभित किया । तोतारामजी गिरमिटिया थे। वहाँ फीजीके किसी गिरमिटियेकी लड़कीसे शादी की होगी, अिसलिओ दोनों गिरमिटिये ही कहलायेंगे । मगर दोनोंने कैसी जिन्दगी गुजारी ? गंगाबहन जैसी मौत सबको आये! असा जीमें आता है कि और कुछ भाग्यमें न हो तो भी अन्तकी घड़ी में आश्रममें हों और गंगाबहनकी तरह रामनाम लेते लेते प्राण निकले तो कितना अच्छा! लेकिन अन्त समय मुँहसे रामनाम निकलनेके लिये और मरते वक्त खुश होनेके लिअ जीवन भी तो वैसा ही होना चाहिये न ! यह कहाँसे लाया जाय ? "
-"हमारा बड़ी गंगावहनका जेलमें कुछ न कुछ झगड़ा हुआ दीखता है। जैसा पत्र रामदासको लिखा था, वैसा ही कल अिन्हें लिखा था । आज सरोजिनीका पत्र आया । असमें अन्होंने शिकायत की "गंगाबहन साग नहीं लेने देतीं, कितनी ही बहनोंकी अिच्छा हो तो भी नहीं लेने देतीं। हम सत्याग्रही बनकर दुःख झुठाने आये हैं और जब तक अस्वच्छ न हो तब तक तो साग लेना ही चाहिये ।" वगैरा । वापूने पत्र लिखकर गंगाबहनको धर्म समझाया- धर्म समझा । जिन्हें सख्त मशक्कत दी गयी है, अन्हें जो काम सौंपा जाय असे प्रसन्न चित्तसे करना चाहिये । वह काम न आता हो और किसीको सिखाने भेजें तो सीख लेना चाहिये । अपराध करके आनेवाली बहनोंसे हमारा शरीर ज्यादा काम देता हो, तो हम ज्याद काम करें । अिसमें हमारी अच्छाभी है और सत्याग्रहीकी शोभा है । तुम्हें बुननेका काम आता है । मुझे तो लगता है कि दूसरी बहनों को निवाकर तुम्हें अच्छी तरह काम चला देना चाहिये । १३६