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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१४५

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और पूछा हृदयसे अिस तरह निकलती हैं मानो मौलिक ही न हों। मेरे लिओ वे अनुभवसिद्ध कही जा सकती हैं।" अिसी तरहकी साफ दिलीसे अन्होंने अक दिन सुपरिण्टेण्डेण्टको जवाब देते समय काम लिया था । सुपरिण्टेण्डेण्टके साथ चमत्कारों और सिद्धियोंकी बातें हो रही थीं। सुपरिण्टेण्डेण्टने कहा कि नटराजनको पत्र लिखा सो ठीक है। मगर असी सिद्धी हो भी सकती है या नहीं ? और हो तो भुमका झुपयोग क्या ?" " झुपयोग यही कि यह अंतिम दशाको पहुँचनेसे पहलेकी अक अवस्था है । मनुष्यको अिसका पता तक न चलना चाहिये । यह सिद्धि अपयोग करनेकी चीज ही नहीं है । अिसका अनायास अपयोग होता हो तो दूसरी बात है ।" " जैसा हो सकता है कि मनुष्य अिसके बारेमें अनजान रहे ?" बाप्पू बोले "हाँ, मैं अनजान था । " आपमें असी कोभी शक्ति है ?" वापूने कहा "हा, असी कोी चमत्कार करनेकी तो नहीं, मगर दूसरी है। मुझे क्या पता था या है कि अमुक जगह मैं अमुक शब्द बोलूंगा, मगर अीश्वर मुझे वह दे देता है । यह अक शक्ति है । मगर सुसका झुपयोग क्या १ वह अपने आप भले ही प्रगट हो।" बापूने यह कहा था कि आश्रमको भेजनेके लिखे कुछ लिखो । मैंने नासिकमें 'मन्दिरोंका दर्शन' नामका नाटक सोचा था। असके ९-५-३२ पाँच दृश्य लिख डाले । मगर बापू कहने लगे 'यह जेलसे नहीं भेजा जा सकता । असी चीजको ये लोग पास नहीं करेंगे और फर भी दें तो अिनकी बदनामी हो । लिखकर रख लो और वाहर निकलकर छाप देना।" बापू बिल्लीका काफी निरीक्षण कर रहे हैं। आजके पत्रकी रचना बिल्ली पर ही की है । बिल्लीका रातको जो दर्शन होता है, वह देखने लायक होता है। छिपकली पर अिसका अकध्यान और अकाम आँख हमारे ज्ञानियोंने नहीं देखी होगी, नहीं तो कहते कि भगवान पर असा ध्यान लगाओ। मगर कल तो अक और ही खुबी देवी । छिपकली बिल्लीके पास आती जा रही थी कि बिल्ली दुम हिलाने लगी । फिर छिपकली वापस लौट गयी और दीवार पर सुलटी दिशामें चल दी। बिल्ली आवाजें मारने लगी, जैसे छिपसलीसे कहती हो कि तू कहाँ मागी जा रही है ? सयानी होकर मेरे मुँहमें आ जा ! जो अंग्रेज भीमानदारीसे यह मानते हैं कि हिन्दुस्तान पर विलायतका कजा रहना ही चाहिये, वे अिस बिल्लीकी याद दिलाते हैं। माँपते अिस विल्लीकी झुपमा ज्यादा ठीक है।