पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१६४

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दिन रहनेके बजाय थोड़े दिन रहे, तो वैसा होने देना चाहिये । शरीरका नीरोगी या दीर्घायु होना विषयरहित होनेका छोटेसे छोटा परिणाम है । । आज बेलगामसे प्रभुदासका लम्वा पत्र आया | और वापूने भी ६०० शब्दोंका लम्बा खत लिखा । मगन चरखे पर १४ दिनकी २०-५-३२ मेहनत के बाद खुदको मिलनेवाले कावृ पर संतोप प्रगट करते हैं । चरखेकी करामातकी तारीफ करते हैं । अिस चरखेको आजमानेका अपना संकल्प वृदे और कमजोर हाथके कारण सफल हुआ, भिसके लिखे अपनेको धन्य समझते हैं और प्रभुदासको लिखते हैं "तेरे चरखेमें मैं जो रस ले रहा हूँ वह तू अपनी आँखों देख ले, तो तुझे अितना आनन्द हो कि तेरा खून अक दो संर तुरन्त बाद जाय । हाथको कुछ नहीं हुआ था, तभी तेरे चरखेका प्रयोग करनेका संकल्प कर चुका या । अत्र तो जबरदस्तीका पुण्य करना पड़ रहा है । या तो कातना छूटे या अिसी चरखे पर कते ।" अितना लिखवाकर कहने लगे. " महादेव, ' Necessity is the mother of invention' का गुजराती क्या है ? " मैंने कहा -'आवश्यकता आविष्कारनी जननी छे', असा मैंने दो तीन जगह लिखा हुआ देखा है । फिर सोचने लगे। वल्लभभाओसे पूछा । वल्लभमाओ अकके बाद अक कहावतें जड़ने लगे। गरज पड़े तो गधेको काका बनाना पड़ता है अित्यादि । मैंने कहा घोड़ा बना देती है, यह बात शायद हो सकती है। फिर बापू बोले---- बस, मुझे सूझ गया है, अब लिखो ." अिसलिओ जैसे आफतमें फँसने पर मनुष्यको नी अकल सूझा करती है, वैसे ही जिस वक्त आफतमें फँसनेके कारण मैं चरखे पर पायी हुी गति बढ़ानेकी युक्तियों खोजा करूँगा। भिस बीच व छूट जाय और अस वक्त मैं मुलाकातें करता हो, तो मुझसे मिल जाना और बात हो तो सिखा जाना ।" प्रभुदासने पूछा था कि गीतामें 'मामेकं शरणं वज' आता है, 'मत्वरः' आता है असमें 'मत्परः'का क्या अर्थ है ? और आप भीश्वरका अर्थ सत्य बताते हैं, तो मनुष्य सत्यका प्रतीक क्या बनाये ? रामनाम जपे, मगर राम कोन ? अिस तरहकी झुलझनें पूछी थीं। असे लिखा- "मत्परः यानी सत्यपरायण । 'चरणपने मम चित्त निष्पंदित करो हे', अिसमें चरणपद्मका अर्थ है सत्यनारायणका -यह शब्द अिस्तेमाल करके भक्तने सत्यको मूर्तिमान बना दिया है। सत्य तो अमूर्त है । अिसलि सब अपनेको ठीक लगे, वैसी सत्यकी मूर्तिकी कल्पना कर लें। यह समझ लेनेके बाद असंख्य मनुष्य असंख्य मूर्तियोंकी कल्पना कर सकते हैं । जब तक ये सब कल्पनायें ही रहेंगी, तब तक सच्ची ही हैं; क्योंकि अिस मूर्तिसे मनुष्यको गरज गधेको कुछ नयी चरणकमल १६१