अपने लिभे जो कुछ चाहिये सो मिल जाता है । असलमें तो विष्णु, महेश्वर, ब्रह्मा, भगवान, जीश्वर ये सब नाम बिना अथके या अधूरे अर्थवाले हैं। सत्य ही पूरे अर्थवाला नाम है । कोभी यह कहे कि मैं भगवानके लिओ मरूँगा, तो अिसका अर्थ वह खुद नहीं समझा सकता और सुननेवाला भी शायद ही समझेगा । मैं सत्यके लिओ मरूँगा, यह कहनेवाला खुद समझता है और बहुत कुछ सुननेवाला भी समझ सकेगा । तू यह पूछता है कि रामका अर्थ क्या ? भिसका अर्थ मैं समझा और असका तू जाप करे, तो यह लगभग निरर्थक है । मगर तू जिसे भजना चाहता है वह राम है, यह समझकर रामनाम जपेगा तो ही वह तेरे लिअ कामधेनु हो सकता है। असे संकल्पके साथ तू जप, फिर भले ही तोतेकी तरह ही रटता हो । तेरे जपके पीछे संकल्प है, तोतेकी रटके पीछे संकल्प नहीं है । यह बड़ा फर्क है। यहाँ तक कि संकल्पके कारण तू तर जा सकता है। तोता संकल्परहित होनेके कारण थककर अपनी रटन छोड़ देगा, या मालिकके लिभे करता होगा तो अपना रोजका खाना पीना लेकर चुप हो जायगा । अिस दृटिसे तुझे किसी प्रतीककी जरूरत नहीं और मिसीलिओ. तुलसीदासने रामसे रामके नामकी महिमा ज्यादा बतलामी है। यानी यह बताया कि रामका अर्थके साथ कोसी सम्बन्ध नहीं । अर्थ तो भक्त अपनी भक्तिके अनुसार बादमें पैदा कर लेगा । यही तो अिस तरहके जपकी खूबी है । नहीं तो यह कहना साबित ही नहीं हो सकता कि जड़ से जड़ मनुष्यमें भी चेतनता आ सकती है। शर्त ओक ही है कि नामका जप किसीको दिखानेके लिओ न हो, किसीको धोखा देनेके लिअ न हो । मैंने बताया अस ढंगसे संकल्प और श्रद्धाके साथ जपना चाहिये । जिसमें मुझे कोमी शंका नहीं कि जिस तरह जरते हुओ जो आदमी यकता नहीं, अस आदमीके लिअ वह कल्पतरु हो जाता है । जिन्हें धीरज होगा वे सब अपने लिअ अिसे सिद्ध कर सकते हैं । प्रथम तो किसीका दिनों और किसीका वर्षों तक जिस जपके समय मन भटका करेगा, बेचैन रहेगा, और नींद आयेगी और अिससे भी ज्यादा दुःखद परिणाम आयेगा । तो भी जो आदमी जपता ही रहेगा, असे यह जप जरूर फल देगा । यह निःसंदेह बात है । चरखे-जैसी स्थूल वस्तु भी हमें तंग किये बिना हाथ नहीं आती, तब अिससे भी मुश्किल दूसरी चीजें अिससे भी ज्यादा कष्ट देकर सिद्ध होती हैं । तब फिर जो अत्तम वस्तुको पाना चाहता है, वह लम्बे अर्से तक अपनेको दी हुी दवाका धीरजके साथ सेवन न करे और निराश होकर बैठा रहे, असके लिअ क्या कहा जाय ? मेरा खयाल है कि जितनेमें तेरे सब सवालोंका जवाब आ जाता है। क्योंकि जिस तरह लिखनेके बाद तेरे लिओ पूछनेको कुछ भी रह नहीं जाता । श्रद्धा जम जाय तो चलते फिरते, खाते पीते, सोते १६२
पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१६५
दिखावट