अनुभव कर रही हूँ। मेरे दिलके अन्दर ये चीजे दीर्घकालके संस्कार जिस तरह जाग्रत करती हैं, मानो मैं प्राचीन कालसे अिन सबको जानती और चाहती हूँ ! कभी कभी तो जैसा लगता है जैसे मेरे सारे पूर्वजन्म आकर मेरे सामने ताक रहे हों । और आप समझ सकते हैं कि रामायणका पदना मेरे लिअ क्या चीज है ? “मैं कह सकती हूँ कि अिस बार पेन रखनेके बजाय असे छोड़ने में मुझे ज्यादा आनन्द अनुभव हुआ है । मुझे किसीसे ीा हो सकती है तो जिसके पास बहुत-सा परिग्रह हो अससे नहीं, बल्कि अससे जिसने राजीखुशीसे और, आनन्दके साथ परिग्रह छोड़ दिया है। नटराजनका पत्र आया । अन्हें लिखा था कि आपको अस साँपका सिर खा जानेवाले और जहर पीनेवाले पर और असके जल्सेमें जानेवालों पर 'अिण्डियन सोशियल रिफॉर्मर में जितना सख्त लिखना चाहिये था, अतना आपने नहीं लिखा । अन्होंने लिखा : As for my paragraph about occult powers which you feel might have been stronger, it is curious but I seem to have utterly lost the taste for and the knack of strong writing particularly in criticizing persons. When I take my pen intending to hit hard, the picture of the other man stands before my eyes and seems to say: 'You do not know what I have to say for myself. I too have ideals however much they may be obscured by my conduct. Judge as you would yourself.' I avoid all adjectives of judgement as poison and try in all that I say to be completely objective. This has become a habit, and I do not doubt that in all circumstances, it is a healthy one. As regards this particular matter, the thought that after all, the man takes his life in his hands, weighs my judgement. As for the curious crowd, they, I suppose, find relief from the tyranny of daily circumstances in witnessing facts which show or seem to show that one man at least is able to rise above them." “योगिक सिद्धियों के प्रदर्शनके मामलेमें मैने जो वाक्य लिखे हैं, बारेमें आप कहते हैं कि वे ज्यादा कड़े होने चाहिये थे। जिस बारेमें मेरा कहना यह है कि कड़ा लिखने में, खास तौर पर दूसरोंकी आलोचना करते समय, मेरी दिलचस्पी 'मिट गयी है। यह बात मेरे स्वभावमें ही नहीं रही है। किसी पर सख्त १७२ me "
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