जीत लेंगे। 'असो मया हत : शत्रुहनिष्ये चापरानपि ।" मैं-" गीताकारने यह वाक्य भिस सम्बन्धमें तो काममें नहीं लिया होगा। आप असे अिस तरह काममें ले रहे हैं, जिससे अिसका मार्मिक असर हो ।" बाप हंसे और कहने लगे "नहीं, मगर बात सच्ची ही. है, वर्ना मूर्ति घड़नेवालेकी झुपमा ठीक नहीं है। क्या आत्माको जिस तरह घड़ा जाता होगा? वैसे यह ठीक है कि हमें तो असका मर्म समझना चाहिये । रोज अपने आपकी जाँच करते रहे और यह सोचते रहें कि अभी तक कितनी दूरी तय करनी बाकी है।" कल यह खबर आयी कि वेड़छी आश्रमका जो सामान जन्त किया गया था और असमें चरखे और बुनाभी वगैराका जो २९-५-३२ सामान या, असे सरकारने जला दिया। कराहीकी झोंपड़ी तो अचानक जल गयी थी। मगर ये चरखे तो सरकारके कब्जे में चले गये थे, अिसलिझे यह कहनेमें क्यों संकोच हो कि सरकारने जला दिये। सरदारका कितने ही मामलोंका अज्ञान विस्मय पैदा करता है। मुझे पूछने लगे-विवेकानन्द कौन थे? और कहाँके थे ? जब यह मालूम हुआ कि बंगाली थे, तो आज ब्रा विशेष स्पष्टीकरण किया कि रामकृष्ण और वे दोनों बंगालमें जनमे थे? 'लीडर'की अक टिप्पणीमें सुभाषका पत्र आया था । जिसमें अन्होंने विवेकानन्दको अपना आदर्श पुरुप बताया था। शायद अिसी लिखे सरदारको जितना कुतुहल हुआ होगा। और आज यह पूछा कि ये दोनों बंगालमें पैदा हुझे थे ? अब तो वे रोमाँ रोलांकी 'रामकृष्ण परमहंस' और 'विवेकानन्द' दोनों पुस्तकें पड़ लेंगे। 'संग्रह किया हुआ साँप भी कामका', यह कहावत केसे चली ? बापूने अक बात कही कि 'अक बुडियाके यहाँ साँप निकला। असे मार दिया गया। असे फिंकवा देनेके बजाय बुढ़ियाने बुसे छप्पर पर रख दिया । अक अड़ती हुभी चीलने, जो कहींसे मोतियोंका हार लायी थी, साँपको देखा तो उसे हारसे ज्यादा कामका समझकर हार तो छप्पर पर डाल दिया और साँपको अठाकर ले गयी! जिस तरह बुड़ियाने साँपका संग्रह करके हार पाया।' सरदारने मूल अिस तरह बताया ." अक बनियेके यहाँ साँप निकला। असे कोी मारनेवाला न मिला। खुद मारने की हिम्मत न हुी या मारना नहीं था, अिसलिओ तपेलेके नीचे ढंक दिया । रातको आये चोर और अत्सुकतासे तपेला खोलने गये । वहाँ सौंपने काट लिया और चोरी करनेके बजाय वे परमधामको पहुँच गये।' नरसिंहरावको पूछना चाहिये । खास तौर पर अिस बातसे प्रेरित होकर कि १८१
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