पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१८९

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6 धन्य हैं। जिन्होंने यह दर्शन नहीं पाया, अन्होंने क्या पाया है ? मनुष्यको सुन्दर शरीर न मिले, सत्ता या पद न मिले, राजगद्दो न मिले, मगर अिससे असने कुछ नहीं खोया । खोया तो तब जब सब कुछ मिल जाने पर भी वह दर्शन न हुआ हो । अिसे प्राप्त करनेके लिओ मनुष्य राज सिंहासनको छोड़ दे, अिस पृथ्वी, समुद्र और आकाश परकी सत्ताका त्याग करे, अगर अिस सब कुछ पर लात मार देनेसे, अिन सबसे सुपर झुठनेसे असकी दृष्टि अस तरफ जाय और असके दर्शन हों। "फिर प्लॉटिनस साधनाका वर्णन करता है: अन्तर्मुख हो जा और अपने अन्तरको देख । असा करने पर भी तुझे अपनेमें सौन्दर्य न दीखे, तो जैसे शिल्पकार मृतिके साथ करता है असी तरह तू कर । मूर्ति सुन्दर तो बननी ही चाहिये । अिसलिमे वह किसी हिस्सेको काट डालता है, और किसीको छील देता है। जिस तरह घड़ते घड़ते वह अपनी मूर्तिको सुन्दरता प्रदान करता है । अिसी तरह तू भी अपने में जो अतिशयता हो असे निकाल फेंक, जो वक्रता हो असे निकालकर सरलता धारण कर । जो अंधकारमें फंसा हुआ हो, असे असमेंसे निकालनेके लिझे जूझ, ताकि वह प्रकाशमें आये। जिस तरह अपनी खुदकी मूर्तिको घड़नेकी कोशिश तु तब तक जरा भी न रोकना, जब तक देवकी तरह सद्गुणोंकी प्रभा तुझ पर चमक न झुठे और तेरी आँखें असके निर्मल सिंहासन पर आरूढ़ हुी शान्ति -समताके दर्शन न कर लें।" वापूने असे लिखा: The passages are very striking and very beautiful, but first is good for all times, while the second may not appeal to the modern mind. I do not find it difficult to understand it." " तुम्हारे भेजे हुझे अंश बड़े चमत्कारी और बहुत सुन्दर हैं । जिनमेंसे पहला शाश्वत मूल्यवाला है, दूसरा आधुनिक मानसको अपील नहीं करेगा। यह समझना मुझे कठिन नहीं लगता ।" " आपको दूसरे अंशके बारेमें औसा क्यों लगता है ?" बापू कहने लगे " अिससे दंभ पैदा होनेकी सम्भवना है । अपनी प्रगतिसे किसे सन्तोप होगा या होना चाहिये ? किसे असा लगेगा कि अब तो में देवताओंकी प्रभासे चमकने लगा हूँ ? फिर भी जिस तरहकी चीज पड़कर कितनों ही को असा लग सकता है | नाथूराम शर्मा अिसी वृत्तिसे बिगड़े हैं । तुरन्त ही लोग असा मानने लगेंगे कि आज कामको वश कर लिया, कल क्रोधको मैंने वापसे पूछा - १८०