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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१९१

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46 अिस वारके 'वसन्त के अंकमें 'Kill two birds with one stone' ओक ही पत्थरसे दो पक्षी मारने पर अितने ज्यादा पन्ने भरे हैं। आज वापूने फिर दाहिने हाथसे पत्र लिखने शुरू किये । बायें हाथका हदसे ज्यादा झुपयोग होनेके कारण असकी भी हालत दाये जैसी हो गयी है। अिसलिझे डॉक्टर कहते हैं कि अब थोड़े दिन दायाँ काममें लीजिये । जिसका वर्गन करते हुओ बापूने गोसीबहनके पत्रमें 'पुनश्च' करके लिखा है : " अब मेरे लिो बायाँ हाय काममें न लेनेकी बारी आयी है । बुढ़ापा जोरसे दरवाजा खटखटा रहा होगा ?" दूसरी तरह भी पत्र मजेदार है: Your welcome letter. I don't expect Jalbhai to trouble to write to me. I expect you the nurses to do that work. A patient has to eat, sleep, complain and bully. He is an angel when he omits to do the two last things. I hope the crutches will go. "I am no good at choosing books for others, even for you, though so near to me. The book of life is really the book to read and that you are doing more or less. The other is amusement for those who have no service. One would think that here at least one would have plenty of time to read. Well, spinning and preparatory study leave little time for reading for amusement. But I must stop this lecturing " Are you keeping well? Has Nargisbahen lost her headache ? The Govts' reply regarding her is that I am not to see her. Evidently they think that she is taking an active part in politics or that she suffers from contamination." " तुम्हारे खतसे खुगी हुी। जालभाीको मुझे लिखनेका कष्ट न करना चाहिये। ये तो तुम नर्सका काम है। बीमार तो खाता है, सोता है, शिकायते करता है और धौंस बताता है । पिछली दो बातें न करे तो असे देवता कहना चाहिये । मैं आशा रखता हूँ कि झुन्दै वैसाखी नहीं रखनी पड़ेगी। " दूसरोंके लि) पुस्तकें पसन्द करनेमें मैं बिलकुल निकम्मा हूँ, तुम्हारे लिमे भी, हाला कि तुम मेरे अितने नजदीक हो । असलमें पहने लायक पुस्तक तो जीवन की पुस्तक है, और असे तो तुम थोड़ा बहुत पर ही रही हो। और कितायें तो जिनके पास काम न हो अनके मनोरंजनकी चीज हैं । किसीका खयाल होगा कि हमें यहाँ पटने को बहुत समय मिलता होगा । मगर कातने और तेयारीकी पढ़ाओके मारे विनोदके लिअ पानेका समय ही नहीं मिलता। लेकिन मुझे अपना व्याख्यान बन्द करना चाहिये । " १८२