पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१९२

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"तुम्हारी तबीयत तो अच्छी है ? नरगिसबहनका सिरदर्द बन्द हुआ ? अनके बारेमें सरकारका जवाब आया है कि में अनसे नहीं मिल सकता । सरकार जरूर यह सोचती होगी कि वे राननीतिक मामलों में सक्रिय भाग लेती हैं या अन्हें राजनीतिका चेप लगा है।" मौनवारको लिखनेके ज्यादातर पत्र जरूरी या असे लोगोंके लिओ ही होते हैं, जिन्हें खुद बापको ही लिखना चाहिये या जिन्हें वापूके अक्षरोंसे आश्वासन मिलता हो । डॉ० मेहताके साथ गहरे सम्बन्धके कारण अनके पुत्रके अत्कर्षमें पितासे भी ज्यादा दिलचस्पी लेकर बापू डॉक्टरफे प्रति अपना ऋण चुका रहे हैं। अक पिता अपने परदेश पहुँचे हुओ लस्केको जिससे ज्यादा क्या लिखेगा! "वेनिसते तेरा पत्र मिला है। जहाजमें समय कैसे बिताया, रास्तेमें क्या क्या देखा, क्या खर्च किया वगैरा बातें लिखे, तो तेरी वर्णन करनेकी शक्ति और सादगीके तेरे विचारोंका मुझे पता चले । . . . घूमने फिरनेकी कसरत करके शरीरको खुब मजबूत बना लेना । जो काम खुद कर सके, वह दूसरेसे न कराना। जही पैदल जा सके वहाँ सवारी अिस्तेमाल न करना । अंगीठीके पास बैठ कर शरीरमं गरमी न लाना, कसरतसे लाना । " डॉक्टरको पत्र नियमित रूपसे लिखना । अन्हें हिसाब भेजना । यह याद रखना कि माँबाप अपने लड़के लड़कियोंके पत्रोंसे कभी अघाते नहीं हैं। तेरी छोटीसे छोटी खबर भी आयेगी, तो अन्हें अच्छी लगेगी। डॉक्टरकी नजर तुझ पर है, अन्हें सन्तोप देना ।" दादभापी आश्रममें रह चुके हैं। अनकी भलाीमें भी बापूको झुतनी ही दिलचस्पी है । " तुम्हारा पत्र अच्छा आया । बुरे विचारों और वृत्तियोंके खिलाफ शेरकी तरह जूझना । जूझना हमारा धर्म है । जीत होना मीश्वरके हाथ है। हमारा सन्तोष जुझनेमें ही है । हमारा जुझना सच्चा होना चाहिये । सत्संगमें रहना । असके लिये सद्वाचन चाहिये । बम्बी जैसे शहरमें सद्वाचन ही सत्संग है । और मेरे खयालसे बहन नरवानका दर्शन भी सत्संग ही है। वह निहायत नेक और पवित्र औरत है।" लक्ष्मी---भावी पुत्रवधु को गंगादेवीकी दैवी मृत्युके बारेमें लिखते हुओ बताया कि आश्रम अिस मौतसे पवित्र हुआ है । अस्थरके पत्रमें लिखा "Feeling is of heart. It may easily lead us astray unless we would keep the heart pure. It is like keeping house and everything in it clean. The heart is the source from which knowledge of God springs. If the source is १८३