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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२३१

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छगनलाल जोशीको लिखा गया पत्र महत्वका था । आश्रमके फेरबदलका खास जिक्र या : “ आश्रममें मजदूरीका ज्यादातर काम हाथोंसे होता है । थोड़े नौकर भी हैं। मगर जैसे ही रहे हैं जो आश्रमके नियमोंका ठीक ठीक पालन करते हैं, और अनके साथ आश्रमवासी काम करते हैं। धीरे धीरे सारी मजदूरी पर काबू पाया जा रहा है। बच्चे भी भरसक मदद देते हैं । नये आनेवालोंको पहले प्रार्थना और भजन वगैरा सिखानेका काम रहता है। अितना कर लेनेके बाद ही जिसे अंग्रेजी पढ़ना हो वह सीख सकता है। यज्ञकी कताजी घण्टा भर सभी साथ साथ करते हैं । २० नम्बरसे नीचेका सूत यज्ञके आँकड़में नहीं गिना जाता । और जितना काता गया हो वह सारा असी दिन दरवाजे पर दे देना चाहिये । मैंने यह सुझाया है कि सब अनुकूल हो जाय, तो यह सूत अपने अपने लिखे कोभी खरीद ही न सके । मेग सदासे यह खयाल रहा है कि जब तक अिम तरह खरीदने की छूट है, तब तक यज्ञ अधूरा है । पिछले सप्ताहसे यह तय हुआ है कि मेहनत किसी भी तरहकी हो, असका अंक आना फी घण्टेके हिसाबसे जमाखर्च रखा जाय। मगर यह निश्चय नहीं हुआ कि असके अनुसार चुकाया भी जाय । फिलहालके लिअ नारणदासको मेरी सूचना यह थी कि असके गले अतर जाय तो जिस प्रकार हिसाबबही रखना शुरू कर दे । यह हिसाबबही वही मामूली बहीखाता। अिसके अलावा, अभी तो यह सिर्फ परिणाम देखनेके लिओ ही है । जिससे बहुतसी बातोंका पता चल जायगा और परिणाम यह हो सकता है कि हम सबकी अक-सी मजदूरी तक पहुँच जायें । यानी कातने, बुनने, पाखाने साफ करने या और किसी भी सामाजिक सेवाके अक घण्टेका भेक आना गिना जाय । तुम्हें याद होगा कि जिसकी चर्चा तो हमने खुत्र की है । आजकल नारणदासको मैं बहुत लिम्व रहा हूँ। असमें अिस विषयकी फिर चर्चा की है । मुझे असा लगता है कि नारणदासकी अिन विचारोंको अपनानेकी शक्ति अब बढ़ गयी है, अिसलि अिस सूचनाका सुसने स्वागत किया है। जिस बहीखातेको लिखने में बहुत समय लगता हो, असी कोसी बात नहीं। और आजकल जो प्रयोग है असे अन्तमें अमलमें लानेको स्थितिमें सब पहुँच जायें, तो हिसाब रखनेका काम अितना आसान हो जायगा कि मामूली गुजगती जानने वाला भी रख सकता है । अिस तरहका हिमाव रखनेकी सफलताका आधार समाज पर है, क्योंकि जो आदमी अपने कामके घण्टे लिखे या लिखवाये, असने अगर काममें चोरी की होगी या चाहे जिस तरहका काम किया होगा, तो जाहिर है कि हिसाब गलत निकलेगा । यानी खोटे और खरे रुपये मिल जाने जैसी बात होगी। बच्चोंकी शिक्षाके बारेमें भी मैं यहांसे काफी लिख रहा हूँ । कहा नहीं जा सकता कि असमेंसे कितना आश्रमवासी अपना सकेंगे। मगर वह सब लिखने २०८