पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२३२

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> बैंट, तो बहुत वक्त चाहिये । और अतना वक्त दिया नहीं जा सकता । जिस मामलेमें तो धीरज ही रखना । हम सबको यह कीमती अवसर मिला है । जिसका हम जैसा ससे वैसा सदुपयोग कर लें। और सबसे अच्छा झुपयोग भीतरी विचार करनेकी शक्ति पैदा करना है। बहुत बार हम विचार शुन्य रहते हैं, और अिसलिभे सिर्फ पटना या बातचीत करना ही अच्छा लगता है । हममेंसे कुछ लोग विचार भी करते हैं, मगर सिर्फ इवामी किले बनानेके । दर असल जैसे पदने वगैराकी कला है, वैसे ही विचारनेकी भी कला है। निश्चित समयमें ही निश्चित विचार आयें; और जैसे निकम्मी पुस्तकें न पड़ें, वैसे ही निकम्मे विचार भी न आने दें। जैसा करनेसे जो शक्ति पैदा होती है और जो शक्ति निकट्ठी होती है, असका अन्दाज नहीं लगाया जा सकता । मैंने हर कैदके समय यह अनुभव किया है कि जिस तरहसे विचार करना सीखनेका वह बटिया वक्त है। अिसलिये तुम सबको मेरी सलाह है कि गहरे विचार करनेकी कला साध लो और असा करोगे तो मुझसे पूछनेको भी ज्यादा न रहेगा । लेकिन जिसका कोी अलटा अर्थ न करे । मुझसे पूछनेकी मैं मनाही नहीं कर रहा हूँ, मगर परावलम्बीपनसे बचाना चाहता हूँ। वैसे तो मैं बैठा ही हूँ। और जिस वात पर मैंने औरोंसे ज्यादा विचार किया है या अनुभव किया है, अससे लाभ झुठा सकें तो सुठा लेनेका तुम्हें अधिकार है, और तुम्हारा धर्म भी है।' 'लीडर में दो बहिया लेख थे। अक नये 'पायोनियर' के स्वामित्व पर और दूसरा काश्मीरके अलग मताधिकार पर । 'पायोनियर में तो मानो अंग्रेज- मुसलमान पड्यंत्रकी यू आ रही है। हाला कि श्रीवास्तव और कुछ दूसरे हिन्दू जमींदार भी असमें हैं, मगर अंग्रेज और मुसलमान अिन लोगोंकी हिमायत करनेका वचन दें और बदलेमें ये लोग अन्हें खास प्रतिनिधित्व देनेका वचन दें, तो कोमी आश्चर्य नहीं । बापू कहने लगे. " अिस मताधिकार पर यह जो लिखेगा, अस परसे पता लग जायगा ।" वल्लभभाभी यह अँगूठे परसे कोहनी तक पहुँचा और कोहनी परसे कंधे पर चढ़ेगा। अव रहने दीजिये न, बहुत कात लिया।" ११-६-३२ बापू ." किसी न किसी दिन तो किसीके कंधे पर चपना ही पड़ेगा न?" वल्लभभाभी ." नहीं नहीं, असा नहीं हो सकता । देशको मझधारमें छोड़कर आप कैसे जा सकते हैं । अक दफा जहाजको किनारे पहुँचा दीजिये; फिर जहाँ जाना हो चले जायें । मैं साथ चलूंगा।" ) - ne