पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२३९

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गोरखपुरसे देवदासकी बीमारीका तार आया । अब अच्छा है । बुखार मोतीझिराका नहीं है, जैसा हनुमानप्रसादने तारसे बताया है। १६-६-३२ बुखारका हमें तो पता नहीं था। बापूने बुखारके बारेमें ज्यादा समाचार मँगानेके लिओ तार भेजा । और देवदासको पत्र लिखाः << "चि. देवदास, " मुझे डर तो था ही । परसों कुछ औसा लगा भी था कि कहीं न कहींसे जैसे समाचार आने, चाहिये। जितनेमें ही कल तार आ गया। वल्लभभाीसे तुरत पूछा : 'यह तार किस बारेमें है ?' तो वह तेरी बीमारीका निकला । गोरखपुर में तु हो और बुखारसे बच जाय, यह असम्भव था। मगर मैं मान लेता हूँ कि यह पत्र तुझे मिलेगा, तब तक तेरा बुखार छुट जायगा । मैं मानता रहा हूँ कि तेरे स्वभावके अनुसार असे समय तेरे पास मित्रमंडली और सगेसम्बन्धी घेर कर बैठे हों तो तुझे अच्छा लगे । तू अिसका हकदार है, क्योंकि तूने बहुतोंकी सेवा की है । मगर मैं ठहरा पत्थरके दिलवाला । अिसलिओ मन नहीं मानता कि पश्चिमसे दोड़ कर वहाँ जानेके लिओ किसीको प्रेरणा करूँ । असा हो तो मनको दबाभुंगा । तत्वज्ञान तेरे पर न आजमायूँ तो किस पर आजमायूँ? मैं चाहता हूँ कि तू अिसे समझे, सहन करे और खुश रहे । तेरे सगे सम्बन्धी, मित्र, और माँबाप सब कुछ अीश्वर है, दूसरे तो नामके हैं । वे खुद अपंग हैं। सुनका सोचा हुआ थोड़े ही होता है । अिस फूटे बादामका आसरा लेनेके बजाय सर्वव्यापक शक्तिका आश्रय लेना । असकी मरजी होगी वैसी मदद वह तेरे लिझे भेज देगा । मेरा विश्वास तो यह है कि तू जहाँ होगा वहाँ अपने पड़ोसीको अपनी तरफ खींच लेगा । जेलमें दूसरा अनुभव होनेका कारण नहीं है । "अितना लिखनेके बाद कहता हूँ कि आश्रममेंसे किसीकी हाजरी व जरूरी समझता हो, तो तार दे देना । मगर मुझे यही आशा है कि भिस पत्रके मिलने तक तेरी बीमारी हवा हो गयी होगी। हम सबके आशीर्वाद तो तेरी जेवमें ही हैं।" आज श्रीमती नायडूका अक सुन्दर पत्र आया । असमें वे अपनी बहिया रसोजीकी बात कहती हैं : Samples of wonderful cookery: toffee made of tama- rind pulp and jaggery, khichri cooked in a broth of drumsticks and other delicacies purely original and spontaneous in inspiration!" 15 २१६