पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२४२

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to " जिसकी प्रवृत्ति आसुरी है, वह स्वार्थवश अपने शरीरसे की तरहके काम लेता है और फिर लया जाता है । असे आदमी स्वस्थचित्त तो होते ही नहीं, अन्हें म किसी तरह आदर्श भी नहीं मान सकते।" भिती पनौते अक और अद्गार ." यह कहने में बुराभी नहीं कि व्यभिचारीके लिझे स्त्री' अवगुणोंकी खान ही है । जैसे पैसेके लालचीके लिो सोनेकी खान नरककी खान है, मगर दुनियाके लिझे वह नरककी खान नहीं । सोनेके सदुपयोग बहुत हैं।" नारायणाप्पाको लिखा: There is nothing like finding one's full satisfaction from one's daily task however humble it may be. To those that wait and watch and pray God always brings greater tasks and responsibilities. "हमारे रोजमर्रा के काम कितने ही छोटे हों मगर अनसे हम पूरा सन्तोष मानें, तो जिसके बराबर और कोभी अच्छी बात नहीं है। जो राह देखते हैं, जाग्रत रहते हैं और प्रार्थना करते हैं, सुनके लिभे मीरवर बड़े काम और बड़ी जिम्मेदारियों नुटा देता है।" मीराके पत्रमें हायके दर्द और अलोने भोजनका हाल बताकर लिखते हैं: "There is a splendid sentence in Sir James Jeans' book:

  • Life is a progress towards death.' Another reading may

be life is a preparation for death. And somehow or other we quail to think of that inevitable and grand event. It is grand event as a preparation for a better life than the past, as it should be for everyone who tries to live in the fear of God. " सर जेम्स जीन्सकी पुस्तकमें अक भव्य वाक्य है: ‘जीवन मौतकी तरफ. प्रगति है ।' दूसरा पाठ यह हो सकता है कि जीवन मृत्युकी तैयारी है। मगर कोन जाने क्यों हम मिस अनिवार्य और भव्य अवसरका विचार करते समय काँप झुठते हैं । हमारे पिछले जीवनसे ज्यादा अच्छे जीवनकी तैयारीके रूपमें भी यह अवसर शानदार है। और जो औश्वरका डर रखकर चलनेकी कोशिश करता है, असके लिये तो वह सदा अच्छे जीवनकी तैयारी ही होती है।" ने पूछा है कि क्या जहरीले साँपके शरीर परसे गुजर जाने देनेकी बात सच है ? बापूने हिन्दीमें लिखा “साँपकी बात ठीक है और ठीक नहीं भी। साँप मेरे शरीर परसे चला जा रहा था। जैसे मौके पर चुपचाप पड़े रहनेके सिवा मैं या दूसरा कोी और क्या कर सकता था ? अिसलिमे जिसमें मैं अस स्तुतिका कारण नहीं देखता, जैसी स्तुति लेखकने की है । और वह जहरीला. "