‘था या नहीं, यह तो कैसे कहा जा सकता है ? मृत्यु कोजी भयंकर घटना नहीं है, जैसे खयाल बहुत वर्षोंसे रहनेके कारण मुझ पर किसीकी मृत्यु ज्यादा समय असर नहीं कर सकती ।" 66 बापने मीराके पत्रमें जीवनको मौतकी तैयारी कहा था । गेटेको अपना प्राणेश्वर माननेवाली बेटीने अपने अक पत्रमें ये ही शब्द १७-६-३२ काममें लिये हैं: How could I be other than happy in the thought that at last he has attained that enternal bliss for which his whole earthly life had been a preparation ? " "अिस विचारसे कि अन्हें अन्तमें शाश्वत शान्ति मिली है मुझे आनन्द कैसे न होगा ? अनकी सारी दुनियावी जिन्दगी अिसके लिअ अक तैयारी ही थी।" छगनलाल जोशीको पत्र लिखा । असमें अपरिग्रह व्रतकी व्याख्याके बारेमें जो कुछ पूछा था वह दुबारा समझाया “ मैं यह सत्य रोज अनुभव कर रहा हूँ कि कुदरत जीवमात्रकी हर क्षणकी जरूरतकी चीज हर क्षण पैदा करती है और जरा भी ज्यादा पैदा नहीं करती। और यह भी देख रहा हूँ कि अिस महान कानूनको हम अिच्छा या अनिच्छासे, जान या अनजानमें, हर घड़ी तोड़ते हैं। और यह तो हम सब देख सकते हैं कि अिस कानून-भंगसे अक तरफ तो बहुतसे मनुष्य भोगका कष्ट झुठा रहे हैं और दूसरी तरफ बेशुमार मनुष्य भूखसे पीड़ित हैं । अिस प्रकार अक तरफ लोग भूखों मर रहे हैं और दूसरी तरफ अमरीकाके धनिक अर्थशास्त्रका गलत अर्थ करके अनाजको नष्ट कर रहे हैं । अिस आपत्तिसे बचनेका हमारा प्रयत्न है । हाँ, कुदरतके अिस कानूनका पालन अिस वक्त तो हरगिज नहीं हो सकता । लेकिन अिससे हमारे लिओ घबरानेका कोभी कारण नहीं है। प्रार्थनाके बारेमें पूछते हुओ प्रेमाबहनने कटाक्ष किया कि आप साकार -मूर्तिका विरोध कैसे करते हैं ? ीश्वर सम्बन्धी भावना हमारी सामाजिक और राजनीतिक स्थितिके साथ साथ बदलती रही है । शंकरके जमानेमें स्वराज या, अिसलिओ अीश्वरके साथ बराबरीकी बात थी । रामानुजके समयमें गुलामी थी, अिसलिमे मनुष्यने दासानुदास होना चाहा । आप साकारका निषेध करते हैं, तो भी तुकाने तो 'सुन्दर ते ध्यान अभा विटेवरी में ही साक्षात्कार. किया है। जिस विषयमें बापूने लिखा "प्रार्थनामें मैंने साकार मूर्तिका निषेध नहीं किया, निराकारको अससे झूची जगह दी है । शायद अिस तरहका भेद करना ठीक न, हो। किसीको कुछ और किसीको कुछ माफिक आ सकता है। २२०
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