परोपकारी पूंजाभाीको (जो बापूको प्रभु मानते हैं और हे प्रमु (३) सम्बोधन करते हैं) लिखा ." तुम्हें तो बहुत ही लिखना आता है। तुमने जन्म सफल कर लिया है। जिसका मन परोपकारमें रमा रहता है और जो अन्त तक जैसी हालतमें बना रहता है, असका जन्म सफल हुआ है नारणदास कहता है कि तुम फिर सो गये थे। जैसा करते करते कभी पूरी नींद आ जायगी । आये, तब स्वागत कर लेना ।" अक भागीको, जिन्हें बहुत धार्मिक पुस्तकें पहनेकी और बहुत ज्यादा विचार करनेकी आदत है, बापूने लिखा-"तुम्हें आश्चर्य होगा कि अभी तो पानेमें गयचन्दभाी और गीताजीको भी छोड़नेकी मेरी सिफारिश है। प्रार्थनाके समय जितनी गीताजी और भजन आवे, अन्हें ही समझ कर मनन करना चाहिये । यह संयम कठिन है, मगर तुम असका चमत्कारी असर देखोगे । अभी तो तुम्हारा पाना ही तुम्हारा काम मालूम होता है। फुरसत हो तब जो झुपयोगी काम पसन्द हो ले लेना, तर्क सब छोड़ देना । 'मेरे लिओ ओक कदम काफी है 'का यही अर्थ है । जो साधन पन्धन बन जाय, असे छोड़ देना । अखबार भले ही पढ़ना ।" अक लपकी पूछती है क्या भूलकी माफी मांगनेमें अत्साह मालूम होता होगा। शर्म नहीं आती ? फिर भी आप कैसे कहते हैं कि शर्म न आनी चाहिये ?" बापूने लिखा "भूल बुग काम है, अिसलिले असकी शर्म होती है। भूलकी माफी माँगना अन्ठा काम है, अिसलिओ असकी शर्म कैसी ? माफी मांगनेका अर्थ है फिरसे भूल न करनेका निश्चय । यह निश्चय हो तो असमें शर्म किस बातकी ? यह समझमें आया ? सत्य और अहिंसाकी तुलना क्या की जाय ? मगर करनी ही पड़े तो मैं कहूंगा कि सत्य अहिंसासे भी बढ़ कर है, क्योंकि असत्य भी हिंसा है। जिसे सत्य प्रिय है, वह तो अहिंसाको किसी दिन अपना ही लेगा।" दो आदमियोंने दरिद्रनारायणके सच्चे मन्दिरमें जाकर असकी सेवा शुरू की है: जीवराम और जेठालाल । जीवराम शुड़ीसाके अशान, आलसी और गरीबीमें फँसे हु. अिलाकेमें जा पहुंचे हैं और जेठालाल मध्यप्रान्तके अनन्तपुर गाँवमें। लाखों आदमियोंकी आवादी असी है, जिन्हें अक आना रोज दिया जा सके तो भी बड़ी राहत है। जिनके पास छह आनेकी कीमतका चरखा खरीदनेकी सहूलियत न हो, अन आदमियों में काम करना कितना मुश्किल होगा ? वहाँ लगन साय पैर जमा कर नेठालाल तीन सालसे पड़े हैं । नेठालालके कामकी रिपोर्ट आयी। झुन्हें बापूने प्रोत्साहन और सूचना देनेवाला लम्बा पत्र लिखा । बिहारमें, जहाँ २२९ -
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