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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२६१

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श्रद्धा संयम नहीं है । पृथ्वी गोल है या नहीं यह कहना बुद्धिका विषय है । तदपि कोभी कहे कि मेरी श्रद्धा है कि पृथ्वी सपाट है! यह श्रद्धा संयममयी नहीं है।" पत्रके अपरके भागमें जो भेद बताया है, वह वापूके लेखों और काका- जैसोंके निवन्धोंक बीचका भेद बताता है । और रोमाँ रोला जब यह कहते हैं कि वापू Intellectual (बुद्धि प्रधान) नहीं हैं, तब शायद वे अिसके पूरे खयालके विना वापू जो कहते हैं वही कहना चाहते हैं । A म्युरियल लिस्टरके साथ काम करनेवाली अक स्त्रीने प्रश्न पूछा था कि सौन्दर्य देखने और भोगनेकी लालसा कैसे होती है ? असे बापूने लिखा: "A craving for things of beauty is perfectly, natural. Only there is no absolute standard of beauty. I have therefore come to think that the craving is not to be satis- fied; but that from the craving for things outside of us, we must learn to see beauty from within. And when we do that, a whole vista of beauty is opened out to us and the love of appropriation vanishes. I have expressed myself clumsily but I hope you follow what I mean." 'सुन्दर चीजोंकी अिच्छा बिलकुल स्वाभाविक है। अितनी ही बात है कि जिसका कोभी खास पैमाना नहीं है कि सुन्दर किसे कहा जाय । अिसलिओ मेरा यह खयाल बना है कि यह अिच्छा पूरी करने लायक नहीं है। बाहरी चीजोंकी लोलुपता रखनेके बजाय हमें भीतरी सुन्दरताको देखना सीखना चाहिये। अगर हमें यह आ जाय, तो सौन्दर्यका विशाल क्षेत्र हमारे सामने खुल जाता है । फिर जिस पर अधिकार जमानेकी अिच्छा मिट जाती है। यह बात मैने जरा वेढगेपनसे रखी है, मगर मैं आशा रखता हूँ कि मेरा मतलब तुम समझ जाओगी ।" दूसरा सवाल असने purpose of life (जीवनका ध्येय) के बारे में पूछा था । असके लिभे लिया : “The purpose of life is undoubtedly to know oneself. We cannot do it unless we learn to identify ourselves with all that lives. The sum total of that life is God. Hence the necessity of realizing God living within everyone of us. The instrument of this knowledge is boundless selfless service." "जीवनका ध्येय वेशक खुद अपनेकी - आत्माको पहचानना है। जब तक हम प्राणी मात्रके माय अकता महसूम करना न सीख लें, तब तक आत्माको "