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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२७५

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है। जिसे सिर्फ अिन्द्रिय दमन करना है, वह चावल खाकर जैसे तैसे गुजर कर सकता है। मगर मूंगफली असके लिझे त्याज्य हो सकती है । तुम्हारी प्रकृतिके लिओ पेड़े जहरके समान समझना । दाल चावल, रोटी साग वगैरा भारी भोजन खानेके बजाय शामको थोड़ा फल यानी मुनक्का, संतरे, अनार या असी ही कोजी रसदार चीज खाओ तो वह जरूर हलका रहे। वैसे खानेकी चीजके रूपमें यही मानना कि दोनों अनाज हैं । अन्न और फलका भेद स्वाद छड़नेमें असमर्थ होते हु भी भगवानको और अपनेको धोखा देनेवाले वैष्णवोंने पैदा किया मालूम होता है । वैष्णव घरानेमें पैदा होनेके कारण मैं अनुभवकी बात लिख रहा हूँ ।" आज कातते समय मुझे खुब थकावट मालूम हुी । या तो अिन पूनियोंसे ५० नम्बरका सूत निकालनेकी ताकत नहीं है २७-६-३२ या फिर अभी मेरा हाय ही नहीं बैठा है। मगर धीरे कतता है और टूटता है, अिसलिओ लगभग पाँच घंटे ८४० वारमें ही चले जाते हैं । और यकावट मालूम होती है सो अलग। यह घाटेका सौदा है। बापूसे मैंने कहा कि मैं हार गया ! बापू कहने लगे- "फोग्न फेरबदल करना चाहिये । थक जाते हो और लथड़ जानेकी सम्भावना हो, तो अंसी खींचतानमें कोमी सार नहीं है । कातना आधा कर डालो ।" अिसलिभे कलसे ही यह फेरबदल करना पड़ेगा। फिर भी मेरी गति तो कुछ है नहीं । नारणदासके पत्रसे पता चलता है कि केशु मिस्रकी रूजीसे ५० नम्बरका मृत ३५० फी घण्टेकी गतिसे निकालता है। कहाँ केशकी गति और कहाँ मेरी ? योगः कर्मसु कौशलम्के सूत्रको मैं अक भी बातमें पहुँच सकूँगा, यह नहीं दीग्यता। काफी समयसे पीजता हूँ फिर भी असी पूनियाँ बनाना नहीं सीखा, जिनमें खामी न हो । और कातनेमें सूत अच्छा है तो गति कुछ नहीं ! कलका सोचा हुआ फेरवदल 'आज किया, तो जरा भी थकान नहीं हुी। और दो घंटेकी बचत होनेसे वह समय पढ़ने में दिया जा २८-६३३२ सका। आज होरका बयान आया । उसका कहना है कि जैसे जैसे प्रान्त और रजवाड़े तैयार होते जायेंगे, वैसे वैसे फेडरेशन होता जायगा; अभी तो प्रान्तीय स्वराज्यका बूंगर ले लो। सुपरिष्टेण्डेण्टने बापूसे पूछा- आपको कैसा लगता है।" बापू कहने लगे लगता क्या? नरम दलवाले जो सोचते थे, सो तो है नहीं । लन्दनमें मैं जो कुछ समझ सका या, वही हो रहा है।"