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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२७६

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यह प्रान्तीय स्वराज्य है ही नहीं । मंत्रियों के पास कुछ भी सत्ता नहीं रहेगी और हरक महकमा बहुत खचीला वन आयगा । जिम्मेदार हुकूमतकी दिशामें कहे जानेवाले अिस कदमसे करोड़ों रुपयेका खर्च बढ़ जायगा। प्रान्तीय स्वराज्यका मेग अर्थ असा है कि केन्द्रीय सरकारको प्रान्तोंकी सेवा करनी चाहिये, प्रान्तोंको केन्द्रकी नहीं । अिस मसविदेमें तो मान्तों पर केन्द्रकी हुकूमत चलेगी। ये सारे पूरी गारण्टीवाले सनदी कर्मचारी, जिन्हें हम अपनी अिच्छाके अनुसार अलग नहीं कर सकते, हमारे सिर पर बैठे रहेंगे। फिर प्रान्तीय स्वराज्य कहाँ रहा १५ सुपरिटेण्डेण्ट कहने लगा " तब तो लड़ाभी चालू रहेगी ?" बापू "क्या जिसमें शक है ?" आज बिरलासे हुंडावनके सवाल पर जितना महत्वपूर्ण साहित्य हो वह सब मैंगवाया ।

बापूके लोभका ठिकाना नहीं है । आश्रममें अकके बाद दूसरा फेरबदल कराते ही जा रहे है । रोजनामचा बन गया है, हरभेकके कामके घण्टे लिखे जाते हैं, यशका सारा सूत ले लिया जाता है, साढ़े तीन बजे सबको-बच्चों तकको-अठाया जाता है. और चार बजे प्रार्थना होती है। अिस सारे दवावको सब कहाँ तक सह सकेगे ? हरक पत्रमें कुछ न कुछ नयी माँग होती ही है । जिनके घर बन्द हैं, वे साफ होने ही चाहिये । जरूर । मगर प्रेमाबहन पूछती हैं कि जिसके लिअ अिस चक्रमेंसे वक्त कहाँसे निकाला जाय । घर पर यह तारीख होनी चाहिये कि नह कब साफ हुआ और यह लिखा रहना चाहिये कि वह कब साफ होना चाहिये और असकी तारीख भी घर पर चाहिये । यह और काम बढ़ गया। बापकी आशा अनन्त है । मगर क्या मनुष्यकी शक्ति भी अनन्त है ? मैंने यापूका ध्यान अिस वातकी तरफ दिलाया कि कामके अिस चोखटेमें जकड़े हुशे बच्चोंको सोनेका काफी समय ही नहीं मिलता । अन्होंने चर्चा करनेका वचन दिया है । मीराबहन और के दो पत्र आये। ने अपनी करणाजनक । हालत क्यान करके जिन्दगीको खत्म कर देनेकी बातें भी २९-६-३२ कही हैं । तुरन्त बापूने को पत्र लिखा। आत्म- हत्याकी अिच्छा कैसे हो सकती है ? मैं यह समझा हूँ कि तुमने कोी चोरी तो की ही नहीं । तिसपर भी सहा फिर न करनेका निश्चय कर लिया, अिसलि यह किस्सा पूरा हुआ। चोरी की हो तो भी वह आत्म- हत्याका कारण नहीं हो सकती । जो अपनी चोरी मंजूर कर ले वह आदमी अससे २५३