पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२८५

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भावनासे भरपूर थे और भावनामें बह भी जाते थे। यह भावना अनके ज्ञानके लिओ हिरण्मय पान थी । धर्म और राजनीतिमें अन्होंने जो भेद किया था, वह ठीक नहीं था। मगर भितने महान व्यक्तिकी आलोचना कैसी? और आलोचना । करने बैठ जाय तो कैसी भी आलोचना की जा सकती है। हमारा धर्म तो यह है कि जैसे व्यक्तियोंसे जो कुछ लिया जा सके वह ले लें । तुलसीदासका जड़-चेतनवाला दोहा मेरे जीवनमें अच्छी तरह रम गया है, अिसलिओ आलोचना करना मुझे पसन्द ही नहीं आता । मगर मैं जानता हूँ कि मेरे मनमें भी कोसी आलोचना रह गयी हो, तो असे जाननेकी तुम्हें अिच्छा हो सकती है। अिसीलिमे मैंने अितना लिख दिया है। मेरे मनमें शंका नहीं है कि विवेकानन्द महान सेवक थे । यह हमने प्रत्यक्ष देख लिया कि जिसे अन्होंने सत्य मान लिया, असके लिझे अपना शरीर गला डाला । सन् १९०१ में जब मैं बेलूर मठ देखने गया था, तब विवेकानन्दके भी दर्शन करनेकी बड़ी अिच्छा थी। मगर मठमें रहनेवाले स्वामीने बताया कि वे तो बीमार हैं, शहरमें हैं और अनसे कोी मिल नहीं सकता । अिसलिओ निराशा हुी थी। मुझमें जो पूज्यभाव रहा है, असके कारण मैं बहुत-सी आपत्तियोंसे बच गया हूँ। अस समय कोी जैसा प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं था, जिससे मैं भावनाके साथ मिलने दौड़ न जाता था। और ज्यादातर जगहों पर मैं भी, कलकत्तेके लम्बे रास्तोंमें, पैदल ही जाता था । अिसमें भक्तिभाव था, रुपया बचानेकी वृत्ति न थी। वैसे मेरे स्वभावमें यह चीज भी हमेशा रही तो है ही।" किशोरलालभाभीको पढ़नेके बारेमें लिखा: “तुम्हें कुछ भी खास तौर पर पकनेकी सिफारिश करनेकी अिच्छा नहीं होती। मैं यह नहीं मानता कि तुमने थोड़ा पड़ा है। मेरा अपना पदना बिलकुल विचित्र माना जायगा । आजकल मैं झुर्दू पढ़ रहा हूँ। चलनके सिक्केके बारेमें मेरी जानकारी अक्षम्य है, अिसलि असमें थोड़ा-सा प्रवेश कर रहा हूँ। दोनोंके पीछे सेवाभाव है। और अिसी भावके मारे मौतके किनारे बैठा हूँ, तो भी तामिलका जो ज्ञान अधूरा रह गया है, असे अच्छी तरह प्राप्त कर लेनेका लोभ रहता ही है। और अिसी तरह बंगाली और मराठीका भी, क्योंकि अिन्हें भी शुरू कर चुका था। और अगर यहाँ काफी समय रहना हुआ तो कोी आश्चर्य नहीं कि जिस अध्ययनमें कूद पहै। तुम्हारा मन भी किसी जैसी दिशामें काम कर रहा हो और किसी नी भाषामें प्रवेश करनेकी अिच्छा हो तो जरूर करो। आश्रम कायम किया तभीसे भाषाओंके बारेमें हम लोगोंकी अिस किस्मकी अभिलाषा तो थी ही । मेरे बारेमें तो वह कभी मन्द नहीं हुी । मगर मैं तुम्हें अिस लालचमें फंसाना नहीं चाहता। हम सबके लिओ मैं अक ही बातकी जरूरत देख रहा .