पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२८६

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" . हूँ और वह यह कि हमने जो कुछ पड़ा है अस पर विचार करें, असे हजम करें और असे अपने जीवनका अक अंग बना लें। अिस दृष्टिसे तो मैंने . . . को यहाँ तक सलाह दी है कि उन्हें गीताका अध्ययन और रायचंदभाीके भाषण वगैरा सब कुछ छोड़ देना चाहिये, और सिर्फ अपने काममें डूबकर असीका विचार करना चाहिये । क्योंकि मैंने यह देख लिया कि अन्होंने 'अनासक्ति योग' और रायचंदभाीके लेखों से बहुत कुछ रट लिया है। मगर भिन सबका सीधा झुपयोग अनसे हो ही नहीं सकता । मेरा खयाल है कि अनका दिल साफ है, मगर अनकी बुदि अन्हें पछास्ती ही रहती है । तरह तरहके तर्क करती है और अन्तमें धृल ही धूल रह जाती है। मेरा लिखा सुनके गले अतर गया दीखता है और अनका जी हलका हो गया है। भिस सलाहका आखिरमें नतीजा कुछ भी निकले, मगर बड़े अनुभवके बाद यह स्पष्ट हो गया है कि जिसके पीछे जो विचारसरणी है वह बिलकुल ठीक है । अिसलिझे तुम- जैसोंको धार्मिक वाचनकी सिफारिश करनेके लिओ मुझे सहज ही प्रेरणा नहीं होती।" आकाशदर्शनके बारेमें : मेरे लिअ यह ीश्वरदर्शनका अक द्वार बन गया है । यहाँ भिस बार अकाक जैसा मालूम हुआ कि आकाशदर्शन तो ओक बड़ा सत्संग है । तारे भी हमारे साथ चुपचाप बातें करते रहते हैं।" बम्बीमें मूलजी जेठा मार्केटके तमाम विदेशी कपड़ेके व्यापारियोंने अपना सारा कपड़ा खुशीसे हटा लिया और जिस तरह कमिश्नरके २-७-२३२ विदेशी और स्वदेशीके बीचकी दीवारको तोड़ डालनेके हुक्मको वेकार बना दिया। अिस वारेमें बापू कहने लगे- " अभी तक यह बात मेरे दिलमें जमती नहीं है। 'टासिम्स में यह हकीकत जैसी की तैसी आयी है। अस पर कोभी आलोचना नहीं है। अिसलि सच तो होगी ही, मगर कल्पनामें नहीं आ सकती । क्या विदेशी और स्वदेशीवालोंने सलाह की होगी ? या विदेशीवालोंने स्वदेशीवालोंकी परेशानी समझी होगी और अपने आप अिस तरह किया होगा ?" होरके बयान पर गोलमेज परिषदके की सदस्योंकी रायें आ रही हैं। अनमेंसे तविकी सबसे सीधी और सच्ची है । आर्डिनेंसोंके बारेमें तो किसीको कुछ भी कहनेकी जरूरत मालूम ही नहीं हुआ। सिर्फ अक फिरोज सेठना बोले थे कि देशमें लड़ाभी जारी रहना भयानक बात है, वगैरा । नरम दलवालोंको अपना कर्तव्य क्यों नहीं सूझता ? अब भी सरकारके साथ सहयोगकी अन्हें क्या लालसा होगी? वे चाहें तो आर्डिनेंस रद करा सकते हैं, मगर चाहते ही न होंगे । यह अिस जमानेकी बड़ी पहेली है । दुष्ट हेतुओंका आरोपण करना २६३