पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२९०

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- no - रागद्वेष वगैराका सदा अभाव । (६) नरकका मुख्य द्वार ? ज० असत्य आचरण । (७) सवाल भूल गया असका जवाब भी अहिंसा है। प्रेमावहनके पत्रमें व्यक्ति या संस्था छोइनेका असुल बताया। जिसके संगमें --- व्यक्ति, समाज या संस्थामें-- अपूर्णता मालूम हो असमें पूर्णता लानेकी कोशिश करना हमारा फर्ज है । अगर गुणोंसे दोष बढ़ जाते हों, तो असका त्याग असहयोग-धर्म है । यह शाश्वत सिद्धान्त है। बापू कहते हैं कि सत्य ही ीश्वर है । आज टॉमस अ केम्निसमें ये अद्गार पानेमें आये : "O Truth! My God! Make me one with Thee in everlasting Charity. I am often times wearied with reading and hearing many things. In Thee is all I přish or long for. Let all teachers hold their peace, and all created things keep silence in Thy presence. Do Thou alono speak to me. "हे सत्य ! मेरे अीश्वर ! शाश्वत दयामें मुझे अपने साथ मिला ले । मैं अक्सर बहुतसी चीजें पड़कर और सुनकर झूब जाता हूँ। मैं जो चाहता हूँ या जिसकी मुझे अभिलाषा है, वह सब तुझमें भरा है । तेरी मौजूदगीमें सब अपदेशक शान्त हो जायें, सारी सृष्टि मौन रहे, और तू अकेला ही मेरे साथ बोल " आगे अक जगह और 'Thou, oh Lord, My God, the eternal Truth speak 11 60 to me. 55 "हे अीश्वर, मेरे प्रमु, सनातन सत्य, मेरे साथ बात कर।" बापू ीइवर शब्दके बजाय सत्य रखकर बहुतसे श्लोक वगैरा पढ़नेको कहते हैं। जिस साधुने सत्यको श्रीश्वर कह कर ही सम्बोधन किया है । टॉमस मे केम्पिसके सुवचनोंमें यह लगता है मानो कितने ही तो भगवद्गीता- हीसे लिये हों। 'ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते' वाली अनिष्टमालाके साथ तुलना कीजिये : Whenever a man desireth anything inordinately, straightway he is disquieted within himself He is easily moved to anger if any one thwarts him. And if he have pursued his inclination, forthwith he is burdened with remorse of conscience for having gone after his passion which helpeth him not at all to the peace he looked for.