मथुरादासको लम्बा खत लिखा । असमें विलायतमें बादशाइके घर गया था तब जान यूझकर साथ ले जाये गये अनी कम्बल'का किस्सा बताया । हिन्दुस्तानमें खादी प्रेम व्यापक नहीं हुआ । दूसरे शन्दोंमें कहूँ तो दरिद्रनारायण की भक्ति व्यापक नहीं हुभी। या जहाँ यह भक्ति है वहाँ अशानमें फंसे हुआ भक्तोंसे यह साबित न हो सका कि यह भक्ति खादीका सीधा और सरल मार्ग है । सूतको किस्म सुधारने के लिभे पुस्तक जरूर लिखो, मगर असमें अक भी वाक्य असा न लिखना जो तुमने अनुभवसे सिद्ध न किया हो । और तुम अपने अकेले के अनुभव परसे सिद्धान्त न बनाना । औरोंको भी यही अनुभव होना चाहिये । औसा न कर सके हो तो पुस्तकको रोक रखना । मैं तो खूब देख रहा हूँ कि जो अनुभवके आधार पर नहीं लिखी गयीं, वे पुस्तकें लगभग निकम्मी है। यह अमी ही बात है जैसे कोभी आज चरकका अनुवाद करके हमारे पास रख दे तो सुसका कोमी अर्थ ही नहीं हो सकता। क्योंकि असमें वर्णन की हुी वनस्पतियों से बहुतसी आज हमें नहीं मिलती; जो मिलती हैं अनमें बताये हु गुण हम सावित नहीं कर सकते । जिसके लिअ सबसे ज्यादा जरूरी तो यह है कि तुम खुद की अंकोंका अच्छेसे अच्छा सूत निकालो और असे निकालने में जिन बातोंका पृथक्करण करो कि तकुओका, चरखेका, कपासकी किस्मका, पीजनका और तुम्हारा अपना यानी कारीगरोंका कितना कितना हिस्सा था। असकी डायरी रखो और अपने अनुभवका दूसरों के अनुभवसे मिलान करो । अिससे जो पुस्तक तैयार होगी, वह धर्मक काँटे पर तुले हु सोनेके पाटकी तरह चलेगी।" आप सूतका अंक कहाँ तक बढ़ाना चाहते हैं, जिस प्रश्नके जवाबमें लिखा. "अक समय २० तककी हद रखी थी, फिर ४० पर पहुंचा और अब कोजी हद दी नहीं रखता। हमें अंसा कपास मिले या हम अपजा लें जिससे ४०० अंक तक पहुँच सकें, जितना बारीक अंक निकल सके जैसा हम पीज सकें, असा सूत कातनेका धीरज रखनेवाला या कातकर देनेवाला वाली हमें मिले और अितना बारीक सूत जुन कर देनेवाला कुशल बुनकर हमें मिले, तो मैं जरूर चाहूँ कि हमें अिस अंक तक पहुंचना चाहिये । मतलब यह है कि हमारा अनुभव और हमारी लगन हमें ले जाय वहाँ तक जानेमें मुझे बहुत अर्थ दिखायी देता है । कारण अिससे कातनेकी कलाका महत्व अकदम बढ़ जानेकी पूरी सम्भावना है। हमारे लिफाफे पर अक्षर फूटे हुभे हों तो अन्हें ढंकनेके लिभे अस रंगीन पहियों लगा देते है। जिसकी नकल करके प्रेमाबहनने अच्छे लिफाफे पर किनारीदार पट्टियाँ लगा दी। अन्हें यापूने लिखा "तुमने लिफाफेको सजानेकी कोशिश करके विगाड़ दिया । व्यर्थक शृंगारके बारेमें असा यही समझो ।
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