पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२९९

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. था और असमें बंगालके कुछ मित्रोंका हाल था। सतीशबाबूने चरखा वर्ग चलाना शुरू किया है और ८५ वर्षके हरदयाल नाग मौज कर रहे हैं, वगैरा । हरदयाल बाइके आगे सिर झुक जाता है । जिसमें मुझे शंका नहीं है कि यह आदमी सेवा करते करते ही मरेगा । वह आराम तो जानता ही नहीं । अनके जैसे सरल स्वभावके सच्चे आदमी कांग्रेसी हल्कोंमें थोड़े ही होंगे। बापू कहने लगे अन्होंने अनासक्तियोग साधा है।" मोतीलाल रायका भी अक बढ़िया पत्र है। उसमें यह बताया है कि अक हिंसा और विप्लवमें विश्वास रखनेवाला व्यक्ति पूरी तरह बदल कर सुनके साथ मिल गया है, असे पकड़ लिया गया है और नजरबन्द कर दिया गया है। अन्होंने जाकर पुलिससे चर्चा की, मगर अपने न माना ! यह लिखा है कि असकी वाफे प्रति श्रद्धा बढ़ती जा रही है। आजकी डाकमें बहुत पत्र हो गये और काफी लम्बे हैं। वल्लभभाजी बोले. “ अच्छा है, जितने ज्यादा हो जाय, अतना ही अच्छा । अनुवाद कर करके यक जायँगे तो कहेंगे कि जाने दो, अिन पत्रोंमें क्या रखा है ? प्रार्थनामें लगनेवाले समयके वारेमें पंडितजीको लिखा "अिससे द्वेष या अरुचि न होनी चाहिये । अिस्लाममें पाँच वक्तकी नमाज है । हर नमाज ज्यादा नहीं तो पन्द्रह मिनिट तो लेती ही है। पढ़नेको अक ही चीज । जीसामी प्रार्थनामें हमेशा ही अक बात रहती है। असमें भी हर समय पन्द्रह मिनिट लगते ही हैं । रोमन केथोलिक सम्प्रदायमें और अंग्रेजी प्रचलित गिरनेमें आधे घण्टेसे कम नहीं लगता। और वह सुबह, शाम और दोपहरको होता है । भक्तको यह मुश्किल नहीं मालूम होता । अन्तमें अपना क्रम बदलनेका हमें किसीको हक नहीं रहा। क्योंकि हम सब अधूरे हैं और क्रम पर हमने बहुत चर्चा कर ली है । हमें असमें दिलचस्पी पैदा करनी ही चाहिये । अससे भीश्वरके दर्शन करने हैं । असीमें हमें रोजमर्राका पाथेय जुटाना है । फेरबदलका विचार छोड़कर जो कुछ है खुसीको शोभायमान बनाकर हम असमें प्राण झुड़ेल दें। जितना विचार करता हूँ मुझे तो यही लगा करता है।" परशरामको लम्बे पत्रमें लिखा "हिन्दी प्रचारके लिये जीवन अर्पण करनेका विचार करो तो मुझे पसन्द होगा ।" " रामायणमेसे अलग अलग प्रकृतिके लोग, अलग अलग श्रेणीके बालक या मनुष्योंको ध्यानमें रखकर भी अलग अलग मनुष्य अलग अलग चुनाव कर सकते हैं।"

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