पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३०३

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छगनलाल जोशीको लिखा "२१ तारीखको रामजीकी अिच्छा होगी तो मिलना हो जायगा । अिन्सानका सोचा हुआ हमेशा कहाँ होता है ? देखो, पापा मोतके बिस्तर पर थी, मगर झुठ गयी । असका पति वरदाचारी भला- चंगा था। वह थोड़े ही दिनकी बीमारीमें चल बसा और राजाजीके लिअ विधवा लड़की छोड़ गया । पापा राजाजीकी प्यारी लड़की है । वह तो बहादुर है अिसलिओ सहन कर लेगी। ज्ञान हृदय तक पहुंच गया होगा तो सहन करना महसूस भी न होगा। क्योंकि समझनेवालेके लि जन्ममरण बराबर है । अिस अनिश्चितताका ताजा अदाहरण आँखोंके सामने है । अिसलि रामजीको आगे रखा है । २१ तारीखको मिलनेकी हमारी भिच्छा असकी अिच्छाके मुताविक होगी तो मिलेंगे, नहीं तो खैरसल्ला!" गंगाबहनको " पत्रोंका घोटाला है। असमें भी समय चला जाता है। अिस तरह कैदी होनेका अनुभव समय समय पर होता रहता है, होना चाहिये । गीताबोध पर अमल करनेको भी मिल जाता है । सोचा हुआ पार न पड़े तो मनको चोट पहुँचती है या नहीं, यह जाना जा सकता है। और चोट पहुँचती हो तो अतनी कमी जरूर है, यह सोचकर आघातको आगे नहीं आने देता । मिलने लायक चीज मांगी जाय । माँगनेसे मिल जाय तो अच्छा, न मिले तो भी अच्छा । सरोजिनी वैद्यराज बन जायेंगी अिसलिओ मेरी तरफसे वधामी देना । अन्हें यह भी कहना कि अनकी मिठाअियोंका अपयोग यहाँ बहुतोंने किया था । मगर जिसका अर्थ असा हरगिज न करें कि फिर भेजनी हैं । रसको घुटे नहीं, परन्तु दें ही होती हैं । मैंने तो पहलेके पत्रमें भी मजाक ही किया था। अंसी चीजें यहाँ हमें शोभा देती ही नहीं । अन्हें सत्र शोभा देती हैं । झुनकी चाल मेरे जैसे चलने जायें, तो गिर जायें । यहाँ तो अक दास है, अक किसान है और अक हम्माल है। असी मूर्तियों सोनेका साज पहनने बैठे तो अन्हें गाँवके छोकरे पत्थर मारें, और वह ठीक ही हो । यह सय सरोजिनी देवीसे हँसाते हसाते कहा जा सके तो कहना । नहीं तो जो शिक्षा जिससे दूसरी बहनें ले सकती हो, ले लें। मैंने तो विनोदमें जितनी शिक्षा भी रख दी है।"

टामस कम्पिमके ये मुश्वास्य मुन्दर हैं: "No man can safely appear in public, but he who loves scclusion, "No man can safely be a superior but he who loves to live in subjection. "No man can safely command but he who hath. learned how to obey well, २८.