. "No man can rejoice securely but he who hath the testimony of a good conscience within. " असा कोमी आदमी सुरक्षित रूपमें जनताके सामने नहीं आ सकता, जिसे अकान्त प्रिय न हो। "कोी मनुष्य सुरक्षित रूपमें अफसर नहीं बन सकता, जिसे मातहतीमें रहना पसन्द न हो। "कोजी मनुष्य सुरक्षित रूपमें हुक्म नहीं दे सकता, जिसे अच्छी तरह हुक्म बजाना न आता हो । "कोभी मनुष्य सुरक्षित रूपमें आनन्द नहीं भोग सकता, जिसका हृदय भीतरसे शुद्धताकी गवाही न देता हो।" तस्माद् अत्तिष्ट कौन्तेय युद्धाय कृत निश्चय की झनकार जिसमें कितने चमत्कारिक ढंगसे आ रही है: Arise, and begin this very instant, and say, now is the time to do, now is the time to fight, now is the proper time to amend my life. 'Except thou do violence to thyself, thou wilt not overcome vice. झुठ और सिसी क्षण शुरू कर । कह दे कि करनेका समय अभी है, यही समय लड़ने का है और यही समय जीवनको सुधारनेका है । " अपने आपको मारे बिना तू विषयोंको जीत नहीं सकेगा। जैसे बापू कहते हैं कि जिस शरीरके रहते मोक्ष नहीं मिल सकता, असी तरह : 'As long as we carry about this frail body we cannot be free from sin, nor live without weariness and sorrow. We must wait God's mercy till iniquity pass away and this mortality be swallowed up in life, "जब तक हम अिस नश्वर शरीरको धारण किये हु हैं तब तक पापसे मुक्त हो नहीं सकते और थकावट और क्लेशके बिना भी नहीं रह सकते। तक पाप निर्मूल न हो जाय और यह मृतत्व अमृतमें न मिल जाय, तब तक हमें ीश्वरकी दया याचते रहना चाहिये ।" 66 11 1 ( कल प्रेमावहनको व्यर्थ शृंगारके विषयमें लिखा और मथुरादासको ४०० नम्बरके सूतके बारे में लिखा था । भिसलिओ बापूके कला .११-७-०३२ सम्बन्धी विचारोंका थोड़ा पुनरावर्तन कर लेनेका विचार हुआ । काफी चर्चा हुी। असका यहाँ देता हूँ: "कलाको झुपयोगसे अलग नहीं किया जा सकता। हाँ, झुपयोग सार . २८१
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