"ये .. 99 परिषदको खत्म कर देने का रास्ता खुला रखनेके लिखे जानबूझ कर रखे गये थे।" चाप्य कहने लगे "मैंने भिस आदमीसे जब पूछा कि क्या आप मानते हैं कि हम लोगोंमें अपना काम चलानेकी शक्ति या योग्यता नहीं है १ तब असने net 91: 'If you want me to be frank, I say yes. .' 'आप चाहते हों कि मैं साफ बात कहूँ तो मैं कहता हूँ कि : हाँ। अिस आदमीके बोलनेमें विश्वास भितना ज्यादा था और शर्मका नाम भी नहीं था।" वल्लभभाी कहने लगे --" मगर भिन व्यापारी लोगोंकी क्या बात है, जिन पर ये अितना भरोसा बाँघ रहे हैं ?" बापू कहने लगे - और . . .जैसे आदमी । वल्लभभाभी मगर पुरुषोत्तमदास और विडलाका क्या हाल है! बापू --- " ये लोग होरको कोसी वचन दे चुके हों औसी बात नहीं है। मगर कमजोरी आ गयी होगी। बिडला होरके हाय बिक जाय, तो असे आत्महत्या करनी चाहिये । और अभी तो मालवीयजी बाहर बैठे हैं। बिड़ला मालवीयजीसे पूछे बिना अक कदम भी रखे असा आदमी नहीं है । नहीं, मुझे भरोसा है कि व्यापारियोंमें ये लोग नहीं हैं।" बापूने विलायतमें जितनी बातें कही और की थी, वे सच निकलती जा रही है । बापू पुकार पुकार कर कहते थे कि यह परिषद प्रतिनिधित्व वाली नहीं है। होर आज नरम दलवालोंको कह रहा है कि गोलमेज परिषद कहाँ प्रतिनिधित्व वाली थी, जो संयुक्त समितिके सामने जानेवाले हिन्दुस्तानी तुम्हें प्रतिनिधित्व वाले चाहिये ? होरको कुछ देना नहीं है। यह भी पुकार पुकार कर कह दिया था कि प्रान्तीय स्वराज्य भी नहीं देना है । मगर शास्त्रीको तो अस दिन भी विश्वास था और वे महात्मा गांधीको अलाहना देने चले थे। - w
'* - मैंने बापूसे पूछा- क्या आज शास्त्रीको लगता होगा कि अन्होंने आखिरी दिन जो भाषण दिया था वह देने में भूल की थी?" बापू "नहीं, वे तो आज भी यह मानते होंगे कि गांधी हमारे साथ रहे होते, तो जो हालत आज हुी है वह न होती। जिसका कारण है । यह सीधा आदमी है और सीधे आदमीकी आत्मवंचनाकी हद नहीं होती । मेरे लिझे भी कहा जाता है कि मैं अक्सर अपनेको धोखा देता हूँ। अस बछड़ेको मारा, तब भी मैंने माना या कि मैं शुद्ध अहिंसा कर रहा हूँ। मगर मुझे क्या मालूम था कि जिस कामका नतीजा क्या होगा ? मेरी भूल हुी हो तो मैं अहिंसाके आचरणमें गिरता चला जागा । अगर मैंने जो कुछ किया सो ठीक २८९