पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यदा चर्मवदाकाशं वेष्टयिष्यन्ति मानवाः । तदा देवमविज्ञाय दुःखस्यान्तो भविष्यति ॥ "जिस अपनिषद्के जमानेमें यह श्लोक लिखा गया, अस समयकी गहन बुद्धिमत्ताकी यह पराकाष्ठा बताता है । आत्मज्ञानके बिना दुःखका अन्त नहीं, यह बात तो है ही । मगर जिस बातका असर अच्छी तरह तब पड़ता है जब आत्मज्ञानके बिना दुःखनाशकी अशक्यता असी ही किसी दूसरी अशक्यतासे बतायी जाय । यह अिस तरह कहकर बतायी है कि जैसे हम चमड़ा शरीर पर पहने हुआ हैं वैसे ही आकाशको पहन सकते हों या जैसे शरीर पर चमड़ा हाइ, माँस, वगैराको ढंके हुओ है असी तरह आकाशसे हम ढंके जा सकते हों, तो आत्मज्ञानके बिना दुःख मिट सकता है । अिस श्लोकके और भी बहुतसे अर्थ निकल सकते हैं, मगर क्या यह शब्दार्थ भी अद्भुत नहीं है ?" सच बात यही है कि अीशोपनिषद् और श्वेताश्वतरमें आत्मतत्त्वकी जैसी व्याख्या हुआ है, वैसी व्याख्या दुनियाके किसी भी साहित्यमें हुी मालूम नहीं होती। आज किसी विषय परसे बात निकली कि वकील और दूसरे वर्ग क्यों नहीं समझते होंगे कि अक वर्ग भी अिकट्ठा होकर असहयोग १६-७-३२ करे, तो हुकुमत सारी बन्द हो जाय ? होर तो जब तक असकी पुलिस और फौज काम करती रहे, तब तक बेफिन हैं। ये काम न करें तो ज़रूर असे धक्का लगे। सन् २१ में कुछ औसी ही हालत थी। बापू कहने लगे ." नहीं, अस वक्त भूपरी चीज़ बहुत थी। मगर सही बात को यह है कि आज हमें स्वराज्य मिल भी जाय तो हम क्या करेंगे ? असे हम हज़म ही नहीं कर सकेंगे। भयंकर अन्दरूनी झगड़े होंगे । अभी जो कुछ हो रहा है उसमेंसे लोग अहिंसा सीखकर निकलेंगे या मारकाटमें विश्वास लेकर निकलेंगे ? मेरे दिलमें अन्दर ही यह विश्वास है कि अहिंसाके बारेमें ज्यादा मजबूत श्रद्धा लेकर निकलेंगे। अभी तो स्वराज्यकी अिमारत बन ही रही है । आजकी हालतका सामना करना, और कैसे काम लिया जाय वगैरा बातोंका निर्णय और अमल करना स्वराज्यका अमल नहीं तो और क्या है ? मगर अिमारत पर गुमटी नहीं चढ़ी है, अिसलिओ हमें स्वराज्य नज़र नहीं आता। आज आश्रमकी डाक चार दिन अिन्तजार करानेके बाद अभी आयी। अिस तरह भी नियमित आ जाया करे तो ठीक है। २९१