पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३१५

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15 56 आजके 'अनुकरण के वचन सोनेके अक्षरोंमें लिखकर सोते और अठते वक्त रोज पढ़ने और मनन करने लायक हैं : १७-७-३२ "The devil sleepeth not, neither is the flesh yet dead; therefore thou must not cease to prepare thyself for the battle; for on the right hand and on the left are enemies that never rest. "शैतान सोता नहीं है। अिसी तरह शरीरके भीतरका पशुत्व मर नहीं गया है। अिसलि लड़ाीकी तैयारीमें जरा भी दम न लेना। तेरे दायें बायें दुश्मन अविश्रान्त बैठे हैं।" आज बापूने आश्रमकी डाक अकेले हाथ पूरी कर डाली । मुझसे छह पत्र लिखवाये और बारह खुदने लिखे। देवदासके पत्रमें लिखा- आजकल मेरी डाकमें खुब गड़बड़ हो गयी है। बड़ा चक्कर काट कर आती है। फिर भी गनीमत है कि मिल जाती है। कैदीका हक ही क्या ? कैदका अर्थ ही हकका न होना है। कैदके बारेमें यह समझ होनेसे मनको शान्त रखा जा सकता है। मिलनेके बारेमें भी यही बात है। बहुत करके महादेवसे मिल सकोगे। मगर तुम सोचते हो वैसा समय विभाग नहीं बनाया जा सकता। या तो न मिलनेकी जोखम झुठायी जाय या मिलनेका मोह ही छोड़ दिया जाय । तुमसे और लक्ष्मीसे मिलना हो जाता तो खुशी तो होती, मगर मेरा झुठाया हुआ कदम ठीक ही लगता है। ज्यादासे ज्यादा चोट वाको लगेगी। मगर असने तो चोटें सहनेको ही जन्म लिया है। मेरे साथ सम्बन्ध करने या रखनेवालोंको करारी कीमत चुकानी ही पड़ती है। यह कह सकते हैं कि बाको सबसे ज्यादा चुकानी पड़ी है। पर मुझे अितना तो सन्तोष है, कि जिससे वाने कुछ खोया नहीं।" आश्रमको व्यक्तिगत प्रार्थना पर प्रवचन भेजा और दो पत्रोंमें प्रार्थनाके बारेमें जवाब दिये। नारणदासभाीको लिखा - आजकल प्रार्थनाके बारेमें विचार आते रहते हैं।" व्यक्तिगत प्रार्थनाकी जरूरत बताते हुओ कहा "प्रार्थनाके समय अन्हें मलिनता छोड़नी ही चाहिये। जैसे कोभी आदमी असे कोमी देखता हो तर बुरा काम करनेमें शरमायेगा, वैसे ही असे भीश्वरके सामने मलिन काम करनेमें शरम आनी चाहिये। मगर भीवर तो हमेशा हमारे हर कामको देखता है, विचारोंको जानता है। अिसलिने असा अक भी क्षण नहीं, जब अससे छिपाकर कोमी काम या विचार किया जा सके। जिस तरह जो दिलसे प्रार्थना करंगा, वह अन्तमें भीस्वरमय ही हो जायगा यानी निप्पाप बन जायगा । $6 N --